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प्रतीकात्मक अन्तःक्रिया

प्रतीकात्मक अन्तःक्रिया का अर्थ एवं परिभाषा

अर्थबोध ( Meaning ) को प्रतीक ( Symble ) कहते हैं । आप हाथ के इशारे से किसी व्यक्ति को अपने पास बुलाते हैं । वह हाथ के इशारे का अर्थ समझकर आप के समीप आता है । यह प्रतीकात्मक पारस्परिक क्रिया है । इस प्रकार की पारस्परिक क्रिया इसलिए समरूप है कि दोनों व्यक्तियों के पास प्रतीकों को समझने के लिए मन ( Mind ) है , समझ है । मन व्यक्ति का होता है या व्यक्ति के पास होता , या यों कहे , मन ही व्यक्ति है । अगर व्यक्ति में अपना मन न होता तो क्या पारस्परिक क्रिया सम्भव होती ?

ब्लूमर ने अपनी व्याख्या में कहा कि सामाजिक मनोवैज्ञानिक की बहुत बड़ी रुचि व्यक्ति के सामाजिक विकास को समझने में है । यहीं से प्रतीकात्मक अन्तःक्रियावाद का जन्म हुआ है । ब्लूमर ने एक नवजात शिशु के विकास को क्रमिक रूप से निरीक्षण का व्याख्या की और वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि शिशु का समाज के साथ जो भी सम्बन्ध है वह प्रतीकों के माध्यम से है , जैसे माता - पिता को हंसते हुए देखता है वह भ हंसने लगता है या बच्चे को मुस्कराते हुए देखकर माता - पिता भी मुस्कराते हैं । बच्चे का रोना , बच्चे का खिलखिलाना , खिलौने से खेलना इत्यादि सब प्रतीक हैं , जिसके द्वारा एक नवजात शिशु समाज को समझने का प्रयास करता है और वही समाज शिशु को समझने का प्रयास करता है ।

बोर्डियू कहते हैं कि किसी भी समाज में भाषा एक ताकतवर प्रतीक होती है । भाषा अन्तःक्रिया का आधार है इसलिए जितनी भाषाएं एक व्यक्ति जानता है उतनी ही उसकी अन्तःक्रियाएं सफल होती है । भाषा के साथ - साथ चित्र भी प्रतीक है । जो काम भाषा नहीं कर सकती वह चित्र कर देता है , क्योंकि चित्रों की लाखों जुबानें होती हैं । चित्र की तरह नृत्यकला भी प्रतीक है । नृत्य में व्यक्ति अपने मनोभाव की विभिन्न मुद्राओं में अभिव्यक्त करता है , जैसे- डरना , प्रसन्न होना , आश्चर्य व्यक्त करना इत्यादि । प्रतीकों के सम्बन्धों में ही अनेक समाजशास्त्री वेशभूषा को प्रतीक मानते हैं जैसे- दूल्हा - दुल्हन की वेशभूषा , इसी तरह डाक्टर , सैनिक , वकील , विधवा महिला सुहागन महिला आदि की भी वेशभूषा से जानकारी प्राप्त हो सकती है । सिर का मुण्डन देखकर पता चलता है कि परिवार में कोई दुखान्तिका घटना हुई है । इन सबसे यह स्पष्ट होता है कि समाज की सम्पूर्ण अन्तः क्रियाएं प्रतीकों द्वारा अभिव्यक्त होती है ।


प्रतीकात्मक अन्तःक्रिया की विशेषता


ब्लूमर के अनुसार अन्तःक्रिया की विशेषताएं

( 1 ) पारस्परिक क्रिया की स्थिति में प्रतीकात्मक रूप से व्यक्ति अपने ' स्व ' को वस्तु के समान रखता है । दूसरे व्यक्ति के संकेत भी , वस्तु के समान , स्थिति के बीच लाये जाते हैं । 

( 2 ) सामाजिक नियम , प्रतिमान , मूल्य आदि प्रत्याशाएँ , वस्तु के समान , स्थिति के बीच , प्रतीकात्मक रूप से लायी जाती है । 

( 3 ) मनुष्य में प्रतीक सृजन की क्षमता है इसलिए वस्तु के रूप में , कोई भी प्रतीक स्थिति के बीच वह ला सकता है । 

( 4 ) पारस्परिकता की स्थिति में जो वस्तुएँ होती हैं , उनमें प्रति प्रत्येक व्यक्ति की अलग - अलग धारणाएँ होती हैं , और अपनी धारणा के अनुसार , वह व्यवहार करता है । अतः अगर यह जानना हो कि किसी स्थिति में व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह का व्यवहार कैसा होगा , तो यह समझना चाहिए कि प्रत्येक वस्तु का प्रतीकात्मक , अर्थ वे क्या लगाते हैं । अगर व्यक्ति ( या समूह ) की प्रतीकात्मक डिजाइन को आप क्या समझते हैं , तो उनके व्यवहार का अनुमान भी लगा सकते हैं । 

( 5 ) वस्तुओं के अर्थबोध और उनके प्रति होने वाली प्रतिक्रिया के आधार पर स्थिति की परिभाषा होती है । इन परिभाषा की सामान्य परिधि में आचरण के परिणामों का मूल्यांकन किया जाता है । इस प्रक्रिया को मानचित्र ( Mapping ) कहते हैं । 

( 6 ) दी हुई स्थिति में व्यक्ति अपने आचरण को कैसे निर्धारित करता है ? इस जटिल प्रक्रिया में व्यक्ति निम्नलिखित तथ्यों का मूल्यांकन करता है- ( अ ) तत्काल उपस्थित दूसरे लोग क्या चाहते हैं , या किन बातों की माँग करते हैं । ( ब ) जो लोग वहाँ तत्काल उपस्थित नहीं है , उनकी भूमिका क्या होगी तथा उनकी भूमिका का वर्तमान कर्त्ता पर क्या प्रभाव पड़ेगा । ( स ) दी हुई स्थिति से कौनसी नैतिक समस्याएँ जुड़ी हुई हैं , ( द ) दी हुई स्थिति के बीच , अगर प्रतीकात्मक रूप से , कोई नयी वस्तु लायी जाये तो परिणाम बाद , व्यक्ति व्यवहार क्या निकलेगा । ( य ) दी हुई स्थिति में एक बार परिभाषा हो जाने के करना प्रारम्भ करता है । इसे व्यवहारों का उत्सर्जन या प्रस्फुटित होना कहते हैं । व्यवहारों के उत्सर्जन से स्थिति की पुनः परिभाषा होती है , उसमें नयी वस्तुएँ जुटती और पुरानी वस्तुएँ हटती जाती हैं । इस प्रकार पारस्परिक क्रिया चलती रहती है ।

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