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संस्कृति किसे कहते हैं

संस्कृति का अर्थ संस्कृति शब्द का वैज्ञानिक एवं औपचारिक अर्थों में प्रयोग मानवशास्त्री ई वी टाइलर के द्वारा 1871 ई . में अपनी पुस्तक प्रिमिटिव कल्चर में किया गया । इन्हें ' मानवशास्त्र का पिता कहा जाता है और समाजशास्त्र में संस्कृति को मानवशास्त्र से लिया गया है । लैटिन भाषा के शब्द कल्चरा से बनी संस्कृति को दो भागों में बाँटा गया है— संस्कृत ( शुद्ध ) और संस्कार ( कृत्य ) में ई वी टाइलर की परिभाषा सबसे अच्छी मानी गई है । समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा समाजशास्त्र की प्रकृति कर्म का सिद्धान्त कर्म का अर्थ एवं परिभाषा इन्होंने इसे परिभाषित करते हुए कहा है कि  संस्कृति वह सम्पूर्ण जटिलता है , जिसमें ज्ञान , विश्वास , कला , नैतिकता , कानून प्रथा तथा वे सभी क्षमताएं एवं गुण सम्मिलित हैं , जिन्हें मानव समाज का सदस्य होने के नाते सीखकर विरासत के रूप में प्राप्त करते हैं । क्रोबर तथा क्लूखौन ने संस्कृति की 108 परिभाषाओं का संकल्प किया । संस्कृति केवल मनुष्यों में पाई जाती है , न कि पशुओं में संस्कृति एक सीखा हुआ व्यवहार है जिसे मनुष्य अपने पास कुछ समय तक संचित करता है , फिर पीढ़ी - दर - ...

कर्म का सिद्धान्त

समाजशास्त्र में कर्म का सिद्धान्त कर्म का सिद्धान्त गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म के सिद्धान्त को बड़े अच्छे ढंग से समझाया है महाभारत में इस बात पर बल दिया गया है कि पूर्व जन्म में व्यक्ति ने जैसे कर्म किए हैं , उसी के फल उसे इस जन्म में प्राप्त हो रहे हैं । लेकिन गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि व्यक्ति के पूर्व जन्म के कर्मों की अपेक्षा वर्तमान जीवन के कर्मों का महत्त्व अधिक होता है । मनुष्य जैसे कर्म करता है वैसी ही मानव की प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता चलता है कर्मयोगी मनुष्य जीवन में कभी कस्ट नहीं उठाते हैं और समाज में अपना स्थान स्वयं बनाते हैं । कर्म भाग्य पर आधारित नहीं है , बल्कि भाग्य कर्म पर आधारित है यदि व्यक्ति के कर्म बदल जाते हैं तो उसके भाग्य का प्रभाव अपरे आप बदल जाता है । वस्तुतः कर्म के अनुसार ही मनुष्य के भाग्य और उसकी सफलता का निर्णय होता है । अतः यह कथन सत्य है कि व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है । कर्म का अर्थ एवं परिभाषा समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा समाजशास्त्र की प्रकृति व्यावहारिक समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा व्यावहारिक समाजशास्त्र की प्रकृति डॉ ...