( 1 ) लोकरीतियाँ /जनरीतियां ( Folkways ) - सामाजिक प्रतिमानों के स्वरूपों में जनरीतियों का भी महत्त्वपूर्ण स्थार हैं । जब भी कोई व्यक्तिगत समूह की आदत का रूप धारण कर लेती है तो उसे जनरीति कहते हैं । उदाहरण के लिए नमस्कार करना , गुरुजनों की प्रणाम करना , जूते पहिनना , किसी के मकान में आवाज देकर प्रवेश करना , सड़क पर बायीं तरफ चलना , मन्दिर में देवता की आराधना हेतु पहले जूते बाहर उतारना , विवाह के समय वधु - पक्ष द्वारा दहेज - देना पाणिग्रहण संस्कार करना , पण्डित साहब का विवाह के समय मन्त्रोच्चारण करना , अनरीतियाँ हैं । दूसरी ओर हर समाज में अभिनन्दन करने की अलग - अलग रीतियाँ हैं । उदाहरण के लिए हिन्दुस्तानी जब अपने मित्रों से मिलते हैं तो अभिवादन में अपना हाथ जोड़ते हैं , जापानी जब अपने मित्रों से मिलते है तो अभिवादन में अपना जूता खोलते हैं |अतः भिन्न - भिन्न समाजों में भिन्न - भिन्न तरह की जन रीतियाँ हैं । ( 2 ) लोकाचार /रूढ़िया ( Mores ) – सामाजिक प्रतिमानों को लोकाचारों का भी मत्त्वपूर्ण स्थान है । समनर समाजशास्त्री का वह कथन है कि जब भी किसी समाज की जनरीतियों से लोगों के कल्याण में ...
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