व्यक्ति समाज में रहकर अपनी सभी आवश्यकताएं पूरी करता है । आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव ने समितियों का निर्माण किया है । ये समितियाँ समाज द्वारा मान्यता प्राप्त कार्य - प्रणाली के आधार पर कार्य करती हैं । समिति व्यक्तियों का समूह है । व्यक्ति समिति की सहायता से अपने लक्ष्यों की प्राप्ति नियमानुसार करता है । समाज में व्यवस्था बनी रहे इसके लिए मानव ने कार्य प्रणालियों , नियमों , पद्धतियों आदि का निर्माण किया है मर्टन का कहना है कि जब लोग सांस्कृतिक लक्ष्य और संस्थागत साधन के अनुसार समाज में कार्य करते हैं तो समाज में आदर्श
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सन्तुलन होता है । समाज में व्यवहार करने के तरीके , समिति की कार्य - प्रणालियाँ , समाज द्वारा मान्यता प्राप्त तरीके ही संस्था कहलाती है । इनके द्वारा समाज में सन्तुलन बना रहता समाज की व्यवस्था , सन्तुलन , नियन्त्रण आदि के लिए सामाजिक संस्थाओं का होना अत्यन्त आवश्यक होता है । अगर समाज में व्यक्ति और समूह अपनी - अपनी सोच के अनुसार कार्य करेंगे तो अव्यवस्था बढ़ेगी । सभी व्यवस्थित तरीकों से व्यवहार करें , कार्य करें , इसके लिए सामाजिक संस्थाओं का होना अत्यन्त आवश्यक है । समिति मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्थापित कार्य - प्रणालियाँ ही सामाजिक संस्थाएँ कहलाती हैं ।
संस्था का अर्थ और परिभाषा
रॉस के अनुसार , “ सामाजिक संस्थाएँ संगठित मानव सम्बन्धों के संग्रह हैं जो सर्वजन - इच्छा द्वारा स्थापित अथवा मान्य है । "
बोगार्डस के अनुसार , “ एक सामाजिक संस्था समाज की वह संरचना है जो मुख्यत : सुस्थापित प्रणालियों द्वारा लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संगठित होती है ।
ऑगबर्न तथा निमकॉफ ने संस्था की व्याख्या करते हुए लिखा है- “ सामाजिक संस्थाएँ कुछ मौलिक मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संगठित और स्थापित प्रणालियाँ हैं । "
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गिलिन और गिलिन का कथन है- “ सामाजिक संस्थाएँ कुछ सांस्कृतिक विशिष्टताओं को व्यक्त करने वाले वे नियम हैं जिनमें काफी स्थायित्व होता है ।
सामाजिक संस्थाएँ समाज द्वारा मान्यता प्राप्त व्यक्तियों की मौलिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने के साधन और कार्य - प्रणालियों की संरचना है ।
संस्था की विशेषताएँ
( 1 ) सामाजिक संस्थाएँ समाज की वह संरचना है जो लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है । संस्थाएँ मुख्यतः सुस्थापित प्रणालियाँ हैं । जब जनरीतियाँ , प्रथाएँ और रूढ़ियाँ पीढ़ी - दर - पीढ़ी हस्तान्तरित होती रहती हैं समाज द्वारा मान्य होती हैं तथा एक ढाँचा या संरचना के रूप में जटिल संगठन बन जाती हैं तभी समाजशास्त्री उसे संस्था कहते हैं । संस्था की प्रमुख विशेषता अनेक कार्य - प्रणालियों से भिन्नता में है कि इनकी एक संरचना होती है ।
( 2 ) निश्चित कार्य - प्रणालियों की व्यवस्था - मैकाइवर और पेज के अनुसार संस्थाएँ स्थापित कार्य - प्रणालियों के रूप हैं । मानव समाज में रह कर अपनी अनन्य आवश्यकताओं , हितों , उद्देश्यों आदि को पूरा करना चाहता है । इसके लिए समाज में निश्चित , स्पष्ट और स्थापित , समाज द्वारा मान्यता प्राप्त कार्य - प्रणालियों का होना आवश्यक है । जब समाज में ये स्पष्ट रूप से विकसित हो जाती हैं तभी समाज के सदस्य व्यवस्थित रूप से अपनी इच्छाओं को पूर्ण कर पाते हैं । इन्हीं को मैकाइवर ने संस्था या कार्य - प्रणालियाँ कहा है ।
( 3 ) संस्था इकाई के रूप में सम्पूर्ण सांस्कृतिक संरचना में संस्था का विशेष स्थान है । सामाजिक संस्थाएँ समाज में रीति - रिवाजों का एक पुँज है । संस्था अनेक जनरीतियों , प्रथाओं और रूढ़ियों का संगठित , व्यवस्थित और सुनिश्चित प्रतिमान है ; एक ऐसी इकाई है जो समाज द्वारा मान्यता प्राप्त है तथा व्यक्तियों को कार्य - प्रणालियों के रूप में सुविधा प्रदान करती है । संस्था एक इकाई के रूप में अनेक जनरीतियों , प्रथाओं तथा रूढ़ियों का विकसित रूप है । यह लिखित , अलिखित तथा किसी भी रूप में समाज में हर काल में विद्यमान होती है ।
( 4 ) अमूर्तता - संस्था मानव समाज की कार्य - प्रणालियाँ है , नियमों की संरचना है , जिसे हम देख नहीं सकते । इसलिए संस्था अमूर्त है , मूर्त नहीं है । संस्था नियमों , रीति - रिवाजों का यह व्यवस्थित संग्रह है । संस्था सामाजिक व्यवस्था तथा संगठन को बनाए रखती है । यह व्यक्तियों पर नियंत्रण की व्यवस्था है । संस्था की यह विशेषता स्पष्ट करती है कि यह व्यक्ति के बाहर होती है तथा व्यक्ति पर दबाव रखती है ।
( 5 ) उद्देश्य - प्रत्येक संस्कृति में प्रत्येक संस्था कोई - न - कोई महत्त्वपूर्ण आवश्यकता की पूर्ति करती है संस्था की उत्पत्ति और विकास का इतिहास भी इसी तथ्य को सिद्ध करता है कि प्रत्येक संस्था का कोई - न - कोई उद्देश्य अवश्य होता है विवाह , परिवार , जाति आदि संस्थाएँ समाज में एक या अनेक उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए समाज में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाए हुए हैं ।
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( 6 ) प्रतीक - यह मानव स्वभाव है कि वह प्रत्येक वस्तु , पदार्थ , परम्परा , प्रथा , विचार , धारणा आदि को कोई - न - कोई नाम दे देता है । उसे पहिचानने के लिए प्रतीक प्रदान कर देता है । इसी प्रकार प्रत्येक संस्था का एक निश्चित सर्वमान्य प्रतीक होता है । यह भौतिक , अभौतिक , मानव के समान पशु , प्राकृतिक वस्तु आदि कुछ भी हो सकता है । उदाहरण के रूप में सूर्य , चन्द्रमा , ॐ गाय , हँसिया , क्रास आदि ।
( 7 ) स्थायित्व - संस्था का विकास बहुत धीमी गति से होता है । इसके विकास में समय भी बहुत लगता है । परन्तु जब संस्था एक प्रतीक , संरचना , अवधारणा , उद्देश्य , कार्यप्रणाली आदि के रूप में विकसित हो जाती है तो उसे बदलना या प्रतिबन्धित करना बहुत कठिन हो जाता है ।
बाल - विवाह , दहेज , वैधव्य , अस्पृश्यता , पर्दा - प्रथा आदि अनेक संस्थागत प्रथाओं को बदलना कितना कठिन हो रहा है । संस्था का स्थायित्व दीर्घकालीन होता है ।
( 8 ) अभिमति और अधिकार - संस्थाएँ समाज द्वारा मान्यता प्राप्त होती हैं । उनका समाज के सदस्य पालन करें इसके लिए संस्था के पीछे सत्ता होती है । उल्लंघन करने वाले को दण्ड दिया जाता है । संस्था मानव समूह द्वारा मान्य होती है । अगर कोई इसका उल्लंघन करता है तो मानव समूह उसे ऐसा करने से रोकता है । व्यक्ति को यह मालूम होता है कि संस्था के पीछे जन समूह की शक्ति है इसलिए वह इसका उल्लंघन करने से डरता है । संस्था के पीछे मानव समूह की शक्ति होने के कारण यह प्रभावपूर्ण होती है ।
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संस्था के कार्य / महत्व
1. मानव व्यवहार पर नियंत्रण-
2. मनुष्य की आवश्यकताओ की पूर्ति-
3. व्यक्ति के कार्य को सरल बनाती है-
4. मार्ग प्रदर्शन करना-
5. सामाजिक अनुरूपता
6. पद प्रदान करना
7. सामाजिक विरासत की रक्षा करना
8. व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में बाधक भी हो सकती है-
संस्था और समुदाय में अन्तर
1.व्यक्ति समुदाय का सदस्य होता है । तथा व्यक्ति संस्था का सदस्य नहीं होता है ।
2.यह व्यक्तियों का समूह होता है । लेकिन संस्था में ऐसा कुछ नहीं होता है ।
3.समुदाय निश्चित भू - भाग में स्थित होता है । लेकिन संस्था का कोई निश्चित भू - भाग नहीं होता है ।
4.समुदाय में व्यक्तियों का समूह और निश्चित भू - भाग होने के कारण इसे देख सकते हैं । यह मूर्त होता । लेकिन संस्था अमूर्त होती है ।
5.समुदाय कार्य - प्रणाली नहीं हैं। संस्था कार्य - प्रणाली होती है ।
6.समुदाय साधन नहीं है । संस्था का विशिष्ट उद्देश्य होता है ।
7.समुदाय साध्य होता है । संस्था आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन होते हैं ।
8.समुदाय का कोई विशिष्ट उद्देश्य नहीं होता है । संस्था साध्य नहीं होती है ।
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समिति और संस्था में अन्तर
1. समिति व्यक्तियों का एक संगठित समूह है । / संस्था नियमों , विधि - विधानों और कार्य - प्रणालियों की एक व्यवस्था है ।
2. व्यक्तियों के समूह के रूप में समिति को देखा जा सकता है । अतः यह मूर्त है । / संस्था अमूर्त है क्योंकि यह नियमों , कार्यप्रणाली आदि की व्यवस्था है जिसे देखा नहीं जा सकता ।
3. समिति स्थापित की जाती है । यह बताया जा सकता है कि किस समिति की स्थापना किसने की । / संस्था का धीरे - धीरे स्वतः ही विकास होता है और इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि इसकी कब , कैसे और कहाँ उत्पत्ति हुई ।
4. समिति अस्थायी होती है । / संस्था अपेक्षाकृत स्थायी होती हैं।
5. समिति का अपना एक नाम होता है । / संस्था का अपना एक प्रतीक होता है । जैसे चर्च का प्रतीक क्रॉस ।
6. समिति व्यक्तिगत हित या कल्याण पर जोर देती है । / संस्था सामूहिक कल्याण पर जोर देती है ।
7. समिति के कुछ औपचारिक नियम होते हैं , जो साधारणतः लिखित रूप में होते हैं । / संस्था के अलिखित अर्थात् अनौपचारिक नियम जनरीतियों , प्रथाओं , परम्पराओं और रूढ़ियों के रूप में होते हैं।
8. समिति की नियन्त्रण - शक्ति अपेक्षाकृत कमजोर या शिथिल होती है । / संस्था की नियन्त्रण - शक्ति अधिक होती है । संस्था द्वारा मान्य रीति - नीति के विरुद्ध आचरण करना अनुचित और असामाजिक समझा जाता है ।
9. समिति विशेष हितों या उद्देश्यों की पूर्ति करती है । / संस्था सामान्यतः मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति में योग देती है , जैसे यौन सन्तुष्टि , सन्तानोत्पत्ति , भोजन , आदि ।
10. हितों की भिन्नता के कारण समितियों के कई प्रकार पाये जाते हैं । समिति के हितों की पूर्ति के लिए किसी न किसी प्रकार की संस्था का होना आवश्यक है । / संस्थाएँ विभिन्न समितियों के हितों की पूर्ति में साधन के रूप में कार्य करती हैं ।
11. समिति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित नहीं होती है । / संस्था एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती है ।
12. मनुष्य समितियों के सदस्य होते हैं । / मनुष्य संस्थाओं के सदस्य नहीं हो सकते हैं क्योंकि संस्था नियमों और कार्य - प्रणालियों की व्यवस्था है ।
13. समिति का क्षेत्र अपने सदस्यों तक ही होता है । इसका क्षेत्र लघु होता है ।/ संस्था का क्षेत्र सम्पूर्ण समाज होता है । इसका क्षेत्र व्यापक या वृहद् होता है ।
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