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सामाजिक प्रतिमान का अर्थ एवं परिभाषा

सामाजिक प्रतिमान क्या है? प्रत्येक समाज में मनुष्य के व्यवहार को नियन्त्रित करने के लिए अपनी आवश्यकताओं के अनुसार व्यवहार के कुछ नियम होते हैं और इस प्रकार के नियमों का पालन करना आवश्यक हो जाता है । समाज का स्वरूप इन्हीं नियमों के आधार पर विकसित होता है और अपने सदस्यों को निर्देशित करता है । संक्षेप में व्यवहार के इन्हीं नियमों को सामाजिक प्रतिमान या सामाजिक आदर्श नियम कहा जाता है । इस प्रकार सामाजिक प्रतिमान समाज के वे नियम हैं जो साँस्कृतिक विशेषताओं , सामाजिक मूल्यों और समाज द्वारा स्वीकृत विधियों के अनुसार किसी विशेष परिस्थिति में व्यक्ति को एक विशेष प्रकार का व्यवहार करने का निर्देश देते हैं ।


सामाजिक प्रतिमान का अर्थ एवं परिभाषा

 

बोरस्टीड के अनुसार - " सामाजिक प्रतिमान एक विशेष प्रकार का सांस्कृतिक निर्देष है जो समाज में हमारे व्यवहारों को व्यवस्थित बनाता है , यह कार्यों को पूरा करने का एक तरीका है , जिसे हमारा समाज निर्धारित करता है ।  

बोगाइस के अनुसार - " सामाजिक प्रतिमान उन नियमों को कहा जाता है जो समाज द्वारा मान्यता प्राप्त तरीकों के अनुसार व्यक्ति को व्यवहार करने के लिये निर्देशित करते हैं

के.डेविस के अनुसार - " यह ( सामाजिक प्रतिमान ) वे नियन्त्रक हैं , जिनके माध्यम से मानव समाज अपने सदस्यों के व्यवहारों का इस प्रकार नियमित करता है कि वे अपनी जैवकीय इच्छाओं को दबाकर भी सामाजिक आवश्यकताओं को विभिन्न क्रियाए करें । 

सामाजिक सम्बन्धों , व्यवहारों तथा आचरणों को नियन्त्रित करने हेतु जिन आदर्शात्मक नियमों का पालन किया जाता है उन्हें ही समाजशास्त्र में सामाजिक प्रतिमान के नाम से सम्बोधित किया जाता है ।


सामाजिक प्रतिमानों का महत्त्व


( 1 ) सामाजिक प्रतिमान सामाजिक सीख की प्रक्रिया को सरल बनाते हैं । 

( 2 ) सामाजिक प्रतिमान व्यक्ति के निर्णय को सरल बना देते हैं । 

( 3 ) सामाजिक प्रतिमान व्यक्ति में समूह के प्रति निष्ठा , उत्साह एवं आकांक्षाओं को जागृत करते हैं । 

( 4 ) बीरस्टीड कहते हैं कि बिना सामाजिक प्रतिमानों के सामाजिक सम्बन्ध अनियमित , गड़बड़ और संभवतः खतरनाक हो जाएँगे । वे प्रतिमान ही हैं जो सामाजिक जीवन को व्यवस्थित स्थिर एवं भविष्यवाणी करने योग्य बनाते हैं जो कि सामाजिक संरचना के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं । ( 5 ) सामाजिक प्रतिमान बाह्य दबाव एवं बन्धन के कारण स्वीकार किए जाते हैं वरन् इनके व्यक्तित्व के अंग बन जाने के कारण व्यक्ति स्वतः ही अचेतन रूप में उनका पालन करता है । ये व्यक्ति का पथ - प्रदर्शन करते हैं और उनके पालन से व्यक्ति में आत्म - चेतना आत्म - विश्वास और कर्त्तव्य - पालन की भावना में वृद्धि होती है । 

( 6 ) सामाजिक प्रतिमान हमारे व्यवहारों एवं विचारों को प्रभावित करते हैं । इन्हीं के माध्यम से हम अपने व्यवहार को व्यवस्थित तथा समाज के अन्य सदस्यों के अनुकूल बनाते हैं । इनके द्वारा ही समाज एक संगठित संरचना प्राप्त करता है , तथा सामाजिक जीवन के कार्य व्यवस्थित होते हैं । 

( 7 ) किसी समाज का अध्ययन करने का सबसे अच्छा तरीका उसके सामाजिक प्रतिमानों का विश्लेषण करना है । जब हम किसी समाज की जनरीतियों , लोकाचारों , प्रथाओं कानूनों , परम्पराओं एवं संस्थाओं को जान जाते हैं , तब हम उस समाज के बारे में काफी जान लेते हैं । इस प्रकार प्रतिमान समाज के अध्ययन में सहायक होते हैं ।


सामाजिक प्रतिमानों की विशेषताएँ


( 1 ) सामाजिक आदर्श नियमों के अन्तर्गत छोटे - बड़े नियमों एवं उपनियमों का समावेश 

( 2 ) ये वे आदर्श सामाजिक नियम हैं जिनके निर्वाह की अपेक्षा समाज के सभी सदस्यों से की जाती है । ये ' कर्तव्य ' भावना से सम्बन्धित हैं जो मांग करते हैं कि हमें विद्यमान परिस्थितियों के अनुसार ही कुछ विशेष प्रकार के व्यवहार करने चाहिए । 

( 3 ) सामाजिक प्रतिमान समाज की वास्तविक परिस्थितियों में सम्मिलित होते हैं । 

( 4 ) सामाजिक उपयोगिता के साथ मनुष्य की आवश्यकताओं में परिवर्तन होने से सामाजिक आदर्श नियम भी परिवर्तित होते रहते हैं । 

( 5 ) सामाजिक आदर्श नियमों का विकास धीरे - धीरे समाज के विकास के साथ साथ होता है और इस प्रकार इन नियमों की स्थापना में बहुत अधिक समय लगता है । 

( 6 ) सामाजिक आदर्श नियम कर्तव्य की भावना की विचारधारा पर आधारित हैं । 

( 7 ) सामाजिक प्रतिमान एक प्रकार के नियन्त्रण हैं जिनके बल पर मानव - समाज अपने सदस्यों के व्यवहार पर अपेक्षित अंकुश रखता है ताकि वे सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन के रूप में कार्य करते रहें । 

( 8 ) सामाजिक आदर्श नियम एक ही प्रकार के व्यवहार करने पर जोर नहीं देते बल्कि वे उनके विकल्प प्रस्तुत करते हैं । 

( 9 ) सामाजिक आदर्श नियम वास्तविक घटनाओं के अनुसार व्यक्ति के आचरण को नियमित करते हैं । 

( 10 ) सामाजिक प्रतिमान लिखित और अलिखित दोनों ही होते हैं । 

( 11 ) सामाजिक आदर्श नियमों को साधारण रूप से जनरीतियों , रूढ़ियों , धर्म , नैतिकता और कानून आदि में विभाजित किया जाता है । 

( 12 ) सामाजिक प्रतिमानों की प्रकृति सरल होती है । अतः इनके अनुसार आचरण या व्यवहार करने के लिए विशेष प्रयत्नों या बुद्धि की आवश्यकता नहीं होती । अतः स्पष्ट है कि सामाजिक प्रतिमान व्यवहार प्रतिमान के वे तरीके हैं जो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पाये जाते हैं । यदि हम इनकी अवहेलना करते हैं तो न केवल हमको बल्कि दूसरों को भी असुविधा होती है । सामाजिक प्रतिमानों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति समाज का अहित करने वाला या समाज विरोधी माना जाता है ।


सामाजिक प्रतिमान तथा सामाजिक मूल्यों में अंतर


( 1 ) सामाजिक प्रतिमान समूह के कार्य करने के स्वीकृत तरीके हैं जबकि सामाजिक मूल्य सामाजिक मानक हैं जिनके द्वारा किसी व्यक्ति के कार्यकलापों को उचित या अनुचित ठहराया जाता है । 

( 2 ) सामाजिक मूल्य किसी समाज के सामाजिक प्रतिमानों के प्रतीक होते हैं । ये लोगों के व्यवहारों को उचित व अनुचित के आधार पर नियमित तथा निर्धारित करते हैं । इस प्रकार सामाजिक प्रतिमान सामाजिक मूल्यों द्वारा निर्धारित होते रहते हैं । 

( 3 ) सामाजिक प्रतिमान सामाजिक कर्तव्य की भावना से संबंधित होते हैं । इनका पालन व्यक्ति किसी बाहरी दबाव से नहीं करता बल्कि नैतिक कर्त्तव्य की भावना के रूप में करता है । सामाजिक मूल्य एक निश्चित प्रकार का व्यवहार करने के लिए व्यक्तियों पर दबाव डालते हैं और ऐसा न करने पर उसे दण्डित करते हैं । सामाजिक प्रतिमान एक विशेष व्यवहार को करने पर जोर नहीं देते बल्कि एक विशेष सांस्कृतिक नियम के अंतर्गत अनेक विकल्प प्रस्तुत करते हैं ।

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