अन्वेषणात्मक अनुसन्धान
इस अनुसन्धान का सम्बन्ध नवीन तथ्यों की खोज से है । इस अनुसन्धान के द्वारा अज्ञात तथ्यों की खोज अथवा सीमित ज्ञान के बारे में विस्तृत ज्ञान की खोज कर मानवीय ज्ञान में वृद्धि की जाती है । इस अनुसन्धान में किसी भी कार्य की रूपरेखा इस प्रकार प्रस्तुत की जाती है कि घटना की प्रकृति एवं प्रक्रियाओं की वास्तविकताओं की खोज की जा सके । सेल्टिज जहोदा कुक के अनुसार , “ अन्वेषणात्मक अनुसन्धान ऐसे अनुभव की प्राप्ति के लिए आवश्यक हैं जो अधिक निश्चित अध्ययन के लिए उपकल्पनाओं के निरूपण में सहायक होते हैं ।
वर्णनात्मक शोध
अनुसन्धान की वह विधि है जिसका उद्देश्य किसी भी समस्या के सम्बन्ध में यथार्थ तथ्यों का संकलन करके उस संकलन के आधार पर समस्या का विवरण प्रस्तुत करना होता है । यहाँ पर ज्यादा ध्यान इस बात पर दिया जाता है कि समस्या से सम्बन्धित जो तथ्यों का संकलन होता है वे तथ्य या सूचनाएँ वास्तविक एवं विश्वसनीय हों अगर ऐसा नहीं होगा तो वर्णनात्मक विश्लेषण वैज्ञानिक ना होकर कपोल कल्पित व दार्शनिक हो जावेगा । यदि अध्ययनकर्ता निरक्षरता के सम्बन्ध में अध्ययन कर रहा है तो तथ्यों का संकलन व सूचना यथार्थता पर आधारित होनी आवश्यक है अन्यथा निरक्षरता की समस्या का वर्णन करना तर्कसंगत व वैज्ञानिक नहीं होगा । एलेक्स इकल्स की पुस्तक " What is Sociology ” के अनुसार , “ वह प्रविधि जिसमें समस्या का सम्पूर्ण विवरण होता है वर्णनात्मक अनुसन्धान कहते हैं । ”
आनुभविक अनुसन्धान
वह पद्धति जो समाजशास्त्र के अध्ययन में इन्द्रियों के प्रयोग पर बल देती है , तथा व्यक्ति के अनुभवों को महत्त्व देती है , आनुभाविक अनुसन्धान पद्धति कहलाती है । यह अनुसन्धान का प्रयोग सबसे पहले भौतिक विज्ञान में हुआ था । अगर इसके शाब्दिक अर्थ की विवेचना करें तो इसका अर्थ होता है कि “ अनुभव पर आधारित अनुसन्धान पद्धति ” । सेलटिज , जहोदा , कुक ने अपनी पुस्तक “ Research Methods in Social Relation ” में बताया है कि “ सामाजिक यथार्थ का ज्ञान अवलोकन व अनुभव के आधार पर ही प्राप्त किया जा सकता है ” । अर्थात् किसी भी अनुसन्धान के लिए मुख्य रूप से अनुभव का प्रयोग महत्त्वपूर्ण है ।
व्याख्यात्मक अनुसन्धान
इस अनुसन्धान में सामाजिक प्रघटनाओं के कारणों की व्याख्या प्रस्तुत की जाती है । घटना या समस्या के कार्य - कारण सम्बन्ध को जानने का प्रयास किया जाता है तथा घटना के घटित होने के मूल में क्या कारण है ? उन कारणों की विस्तृत व्याख्या बतायी जाती । डॉ . राम आहुजा के अनुसार , “ घटना या समस्या के कार्यकारण सम्बन्धों को पता करने के लिए जिस विधि का प्रयोग करते हैं उसे व्याख्यात्मक अनुसन्धान कहते हैं । ” C.V. गुडे अपनी पुस्तक “ Methods of Research ” में बताते हैं कि “ समस्या वस्तुतः एक प्रश्नवाची वाक्य या कथन है जो यह पूछता है कि दो अथवा दो से अधिक चरों के मध्य क्या सम्बन्ध है । इस सम्बन्ध को व्याख्यात्मक अनुसन्धान के माध्यम से जाना जा सकता है । "
विशुद्ध अनुसन्धान
विशुद्ध/आधारभूत अनुसन्धान ज्ञान का विस्तार तथा सिद्धान्ता के सव - निर्माण के लिए किया जाता है । हेरिंग के अनुसार , “ आधारभूत अनुसन्धान “ ज्ञान के भण्डार ' में वृद्धि करता है , साथ की मस्तिष्क में विद्यमान शंकाओं , संशयों का निराकरण करके परिष्कृत करता है । " नेसफील्ड के अनुसार , “ विशुद्ध शोध का उद्देश्य सामाजिक घटनाओं में कार्य - कारण सम्बन्धों का पता लगाना होता है ।
व्यावहारिक अनुसन्धान
व्यावहारिक अनुसन्धान में अनेक व्यावहारिक समस्याओं के समाधान प्राप्त होते हैं , सामान्यतः विशुद्ध व मौलिक अध्ययन के द्वारा प्राप्त परिणाम को व्यावहारिक बनाने का प्रयास किया जाता है । पी.वी. यंग ने लिखा है कि “ ज्ञान खोज का निश्चित सम्बन्ध लोगों की प्राथमिक आवश्यकताओं एवं कल्याण से होता है । व्यावहारिक अनुसन्धान की संज्ञा उसे दी जाती हैं जिसमें ज्ञान प्राप्ति मानवीय भाग्य के सुधार में सहायता प्रदान कर सके । होर्टन एवं हंट के अनुसार , “ जब वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग ऐसे ज्ञान के लिए किया जाता है जो व्यावहारिक समस्याओं के समाधान में उपयोगी हो तो इसे व्यावहारिक अनुसन्धान कहते हैं । ” व्यावहारिक अनुसन्धान का उद्देश्य या परिप्रेक्ष्य मानविकी व जनकल्याण से जुड़ा होता है ।
परीक्षणात्मक अनुसन्धान
यह अनुसन्धान ऐसा अवलोकन है जो नियन्त्रित परिस्थितियों में किया जाता है । इस अनुसन्धान में कुछ प्रयोग या परीक्षण किये जाते हैं । प्रयोग वा यहाँ अर्थ है - ' नियन्त्रित परिस्थितियों में अवलोकन करना । " जहोदा व कुक के अनुसार , “ सामान्य अर्थ में एक परीक्षण को प्रमाण के संकलन को व्यवस्थित करने की प्रणाली माना जा सकता है जिसमें किसी उपकल्पना की सार्थकता में निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं अर्थात् इस अनुसन्धान के माध्यम से किसी भी उपकल्पनाकी सत्यता , उपकल्पना की प्रमाणिकता उपकल्पना की विश्वसनीयता का प्रयोगों के माध्यम से परीक्षण किया जाता है । चैपिन के अनुसार , समाजशास्त्रीय अनुसन्धान में परीक्षणात्मक अनुसन्धान की अवधारणा नियन्त्रण की दशाओं में अवलोकन द्वारा मानवीय सम्बन्धों के अध्ययन की एक प्रविधि है।
प्रयोगात्मक या परीक्षणात्मक अनुसन्धान को निम्न भागों में बाँटा गया है ।
( i ) पश्चात् परीक्षण ( After Only ) – इस परीक्षण में समान गुण वाले दो लिये जाते हैं । एक समूह को ज्यों - का - त्यों रहने दिया जाता है अर्थात् कोई परिवर्तन लाने समूह का प्रयास नहीं होता । इस समूह को नियन्त्रित समूह कहते हैं , दूसरे समूह पर किसी कारक का प्रभाव डालकर परिवर्तन लाने का प्रयास किया जाता है अर्थात् प्रयोग किया जाता है अतः इसे परीक्षणात्मक समूह कहते हैं । निश्चित समय के बाद दोनों समूहों ( i ) नियन्त्रित ( ii ) प्रयोगात्मक का अध्ययन किया जाता है । अध्ययन में यदि परीक्षणात्मक समूह में नियन्त्रित समूह की तुलना में अधिक परिवर्तन आता है तो इसका कारण यह कारक माना जाता है जिसका कि प्रभाव डालकर परिवर्तन लाने का प्रयास किया गया था ।
( ii ) पूर्व - पश्चात् परीक्षण ( Before - After ) - इस परीक्षण में केवल एक समूह का चयन किया जाता है अर्थात् केवल प्रयोगात्मक समूह का चयन होता है , सर्वप्रथम तथ्य संकलन करके अध्ययन किया जाता है । इसके बाद नवीन कारक का प्रभाव डालकर परिवर्तन लाने का प्रयास किया जाता है । कुछ समय के बाद पुनः तथ्य संकलन किया जाता है तथा दोनों अध्ययनों का तुलनात्मक अध्ययन करके दोनों में अन्तर निकाल लिए जाते हैं जो अन्तर प्राप्त होता है उसे नवीन कारक का प्रभाव माना जाता है तथा उसी कारक को परिणाम का जिम्मेदार माना जाता है ।
( iii ) कार्यान्तर तथ्य परीक्षण ( Ex - Post ) - इस परीक्षण के द्वारा जो घटना पहले घट चुकी है अर्थात् जो घटना इतिहास का हिस्सा बन चुकी है , भूतकाल की घटना का हन अध्ययन किया जाता है क्योंकि भूतकाल की घटना को दुबारा समाज में दोहराना सम्भव नहीं है , पहले घटित घटना के कारण - परिणाम को जानने के लिए कार्यान्तर तथ्य परीक्षण किया जाता है
तुलनात्मक अनुसन्धान
इस पद्धति के द्वारा दो प्रकार की समस्याओं का हल प्रस्तुत करते हैं । ( i ) उन समस्याओं का जिनका सम्बन्ध वर्तमान से है ( ii ) वे समस्या जिनका सम्बन्ध भूतकाल व इतिहास से है । तुलनात्मक पद्धति का कार्य केवल कुछ घटनाओं की तुलना करना ही नहीं है बल्कि तुलना के द्वारा उनकी व्याख्या भी की जाती है ।
ऐतिहासिक अनुसन्धान
इस अनुसन्धान पद्धति में सामाजिक तथ्यों की प्रामाणिकता और सत्यता को इतिहास की घटना के आधार पर विश्लेषित किया जाता है । क्योंकि समाजशास्त्र में “ क्या है " के साथ - साथ घटना क्यों और कैसे घटित हुई का भी अध्ययन किया जाता है । पहले इस पद्धति को उद्विकासीय पद्धति कहते थे । जॉन डब्ल्यू . बेस्ट ने अपनी पुस्तक “ Research in Education ” में बताया है कि ऐतिहासिक अनुसन्धान का सम्बन्ध ऐतिहासिक समस्याओं के वैज्ञानिक विश्लेषण से है । रेडक्लिफ ब्राउन के अनुसार , “ ऐतिहासिक पद्धति वह विधि है जिसमें वर्तमान में घटित होने वाली घटनाओं को भूतकाल में घटित हुई घटनाओं के धारा प्रवाह व क्रमिक विकास की एक कड़ी के रूप में मानकर अध्ययन किया जाता है । "
क्रियात्मक शोध
क्रियात्मक शोध को व्यावहारिक शोध का ही एक प्रकार माना जा सकता है क्योंकि इसका सम्बन्ध भी शोध द्वारा प्राप्त ज्ञान के व्यावहारिक उपयोग से है । करीब 30 वर्ष पूर्व क्रियात्मक शोध का प्रारम्भ अमेरिका में हुआ । प्रो . कोलियर , लेविन तथा स्टेफन एम . कोरी ने क्रियात्मक शोध नामक अवधारणा को मूर्त रूप देने का प्रयास किया । इन लोगों की मान्यता है कि क्रियात्मक शोध के माध्यम से सामाजिक सम्बन्धों को ज्यादा अच्छा बनाया जा सकता क्रियात्मक शोध के अर्थ को स्पष्ट करने की दृष्टि से गुडे एवं हाट ने लिखा है , क्रियात्मक शोध उस कार्यक्रम का एक भाग है जिसका कि लक्ष्य मौजूदा दशाओं को परिवर्तित करना होता है , चाहे वह गन्दी बस्ती की दशाएँ हों या प्रजातीय तनाव तथा पूर्वाग्रह हों , या किसी संगठन की प्रभावशीलता हो ।
मूल्यांकनात्मक शोध
मूल्यांकनात्मक शोध के सम्बन्ध में विलियमसन , कार्प एवं डालफिन ने बताया है कि यह शोध वास्तविक जगत् में सम्पादित की गयी ऐसी खोज है जिसके माध्यम से यह मूल्यांकन किया जाता है कि व्यक्तियों के किसी समूह विशेष के जीवन में सुधार लाने के उद्देश्य से जो कार्यक्रम बनाया गया , वह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में कहाँ तक सफल रहा है । इसके द्वारा कार्यक्रम की प्रभावकता को आंका जाता है । जहाँ उद्देश्यों तथा उपलब्धियों में अन्तर कम से कम हो , वहाँ उस कार्यक्रम को उतना ही सफल माना जाता है ।
गुणात्मक अनुसंधान
जिन पद्धतियों की सहायता से अमूर्त तथ्यों का अध्ययन किया जाता है , समाज से सम्बन्धित उन विषयों , प्रकरणों , समस्याओं का अध्ययन जो लघुस्तरीय होते हैं , उन पद्धतियों को गुणात्मक पद्धति कहते हैं । गुणात्मक शोध विधि उन तथ्यों से सम्बन्धित होती है जो संख्यात्मक रूप से नहीं होते तथा इस विधि का मूल आधार तर्कशास्त्र होता है । डॉ . सुरेन्द्र सिंह के अनुसार , “ वे विधियाँ जो आगमन व निगमन के आधार पर निष्कर्ष निकालती है , गुणात्मक शोध पद्धति कहलाती है । " डॉ . वाजपेयी के अनुसार , “ वे पद्धतियाँ जिनका आधार लोगों के अनुभव , भावना प्रतिक्रिया व जीवन के अमूर्त पक्ष होते हैं उन्हें गुणात्मक पद्धति कहते हैं । ” संक्षेप में हम कह सकते हैं कि इस शोध पद्धति की सामग्री अवलोकन , साक्षात्कार व लिखित सामग्री होती है तथा इसमें गुणात्मक पक्षों का अध्ययन किया जाता है ।
गुणात्मक अनुसंधान पद्धति की विशेषताएँ
पी.वी. यंग ने अपनी पुस्तक “ Scientific Social Survey and Research " में गुणात्मक पद्धति की निम्न विशेषताएँ बतायी हैं ।
( 1 ) गुणात्मक अनुसन्धान मानव व्यवहार का अध्ययन विस्तृत परिप्रेक्ष्य में करता है ।
( 2 ) इकाई का गहन अध्ययन किया जाता है अर्थात् इकाई से सम्बन्धित विभिन्न पक्षों में गुणात्मक दृष्टिकोण से तथ्य एकत्र किये जाते हैं ।
( 3 ) इस पद्धति में सामाजिक प्रक्रिया , कारकों की जटिलता , उनके परस्पर सम्बन्धों में क्रम का अध्ययन किया जाता है ।
( 4 ) ऐतिहासिक व कालक्रमिक घटनाओं का विस्तृत अध्ययन होता है ।
( 5 ) यह पद्धति गुणप्रधान अध्ययनों पर बल देती है ।
( 6 ) गुणात्मक अनुसन्धान सुनिश्चित उद्देश्यपूर्ण चयनित इकाइयों के गुणों का गहन अध्ययन करता है ।
गणनात्मक अनुसन्धान
समाजशास्त्र में मूर्त तथ्यों को संख्यात्मक या गणनात्मक रूप से व्यक्त करने के लिए इन पद्धतियों का प्रयोग करते हैं । यह माना जाता है कि इन पद्धतियों से किये गये अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष परिशुद्ध एवं निश्चित होते हैं ।
डॉ . सुरेन्द्र सिंह के अनुसार , जिस अनुसन्धान की विधि में अध्ययन की इकाइयों की गणना पर अधिक जोर दिया जाता है तथा विश्लेषण में गणनात्मक चर आय , आयु , परिवार के आकार , पर सामग्री का विश्लेषण व व्याख्या की जाती है उसे संख्यात्मक या मात्रात्मक अनुसन्धान पद्धति कहते हैं । " कार्ल पियर्सन के अनुसार , “ इस अनुसन्धान का मुख्य उद्देश्य घटना या समस्या की संख्यात्मक रूप से नाप - तौल है । " अर्थात् इस अनुसन्धान में आँकड़े संकलन करने के बाद उनका वर्गीकरण और सारणीयन किया जाता है । उसके बाद विश्लेषण व व्याख्या में विभिन्न सांख्यिकीय विधियों प्रतिशत , माध्य , बहुलक , विचलन , सह - सम्बन्ध , विक्षेपण का प्रयोग करके अध्ययन किया जाता है ।
गणनात्मक अनुसन्धान की विशेषताएँ
वर्गेस व पी.वी. यंग ने निम्न विशेषताओं का उल्लेख किया है
1. यह पद्धति संख्या प्रधान अर्थात् अंकों को प्रधानता देने वाली विधि है ।
2. गणनात्मक पद्धति का अध्ययन क्षेत्र बड़े स्तर का होता है । अत : इसके निष्कर्षों के आधार पर सिद्धान्त बनाये जा सकते हैं
3. इस पद्धति में किसी एक इकाई का अध्ययन ना करके विभिन्न इकाइयों के अध्ययन पर बल दिया जाता ।
4. घटनाओं को देखने का परिप्रेक्ष्य संख्यात्मक होता है ।
5. गणनात्मक अनुसन्धान में कुछ कारकों व चरों का ही अध्ययन किया जाता है परन्तु इन कारकों की संख्या , आवृत्ति , परस्पर सम्बन्ध की मात्रा , परिवर्तन की दिशा व दश दोनों पर बल दिया जाता है ।
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