सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कस्बा किसे कहते है?

कस्बे का अर्थ

' कस्बा ' गाँव और नगर के बीच की स्थिति है । मोटे तौर पर कस्ब की संख्या गांव से अधिक किन्तु नगर से कम होती है । इसी प्रकार गाँव में कुछ इस प्रकार की वशेषताएँ आ जाती हैं जो प्रायः नगरों में पाई जाती हैं तो उसे कस्बा कहा जाता है । इसको इस रूप में भी कहा जा सकता है कि बड़े गाँव में जब नगरीय विशेषताओं का समावेश होने लगता है तो उसे कस्बे की संज्ञा दी जा सकती है । 

गाँव,कस्बा और नगर में भेद 

गाँव, कस्बा और नगर में भेद का आधार मुख्य रूप से जनसंख्या माना गया है । 1000 तक की आबादी वाली बस्ती को गाँव , 5,000 से 50,000 तक की आबादी वाली बस्ती को कस्बा तथा 50,000 से अधिक की बस्ती को नगर की संज्ञा दी जा सकती है । भारत में सन् 1901 की जनगणना में कस्बे की अवधारणा को Imperial Census Code के अनुसार स्पष्ट किया गया । इसके अनुसार ' कस्बे ' के आधार इस प्रकार हैं- 

( i ) किसी भी प्रकार की नगरपालिका हो , 

( ii ) नगरपालिका के क्षेत्र में सिविल लाइन क्षेत्र न हो ,

( iii ) सभी निवासी लगभग स्थायी हों , 

( iv ) कम से कम 5,000 की जनसंख्या हो । 

1901 1951 , 1961 , 1971 व 2001 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार ' कस्बे ' में इन क्षेत्रों को सम्मिलित किया जा सकता है 

( i ) नगरपालिका , 

( ii ) नोटीफाइड एरिया , 

( iii ) टाउन एरिया , 

( iv ) छावनी क्षेत्र , 

( v ) 5,000 से अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र । 

कस्बे की परिभाषा

श्री बर्गल ने कस्बे की परिभाषा करते हुए लिखा है , " कस्बा एक ऐसी नगरीय बस्ती के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो पर्याप्त आयामों से ग्रामीण क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व रखता हो ।  

रिचथोफेन के शब्दों में , “ कस्बा एक संगठित समूह है जिसमें सामान्य रूप में प्रमुख व्यवसाय कृषि क्रियाओं के विपरीत वाणिज्य तथा उद्योग से सम्बन्धित होता है । " मात्र ' जनसंख्या ' को ही कस्बे की विशेषता या आधार नहीं माना जा सकता ।

कस्बे की विशेषताएँ 

( i ) कस्बे की प्रमुख विशेषता के रूप में ' जनसंख्या ' के महत्त्व को नकारना सम्भव नहीं है । सन् 1921 और उसके बाद की जनगणना रिपोर्टों में नगरीय लक्षणों वाली उन बस्तियों को ' कस्बे ' की संज्ञा दी गई जिसकी जनसंख्या कम से कम 5,000 हो  

( ii ) कस्बे के आधार रूप में स्थायी निवास और जनसंख्या के घनत्व का भी वर्णन किया जा सकता है । अर्थात् प्रति वर्ग मील 400 व्यक्तियों का घनत्व होना चाहिए और सभी लोगों को स्थायी रूप से उस क्षेत्र का निवासी होना आवश्यक है । 

( iii ) कस्बे की एक प्रमुख विशेषता या आधार व्यवसाय से सम्बन्धित है , अर्थात् वहाँ के निवासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि न होकर गैर - कृषि व्यवसाय होना चाहिए ।

( iv ) कस्बे के लिए एक प्रमुख आवश्यक शर्त यह भी है कि वह क्षेत्र निश्चित रूप में एरिया , नोटीफाइड एरिया या नगरपालिका भी अवश्य होनी चाहिए । 

( v ) कस्बे में अधिकाधिक नगरीय विशेषताएँ जैसे- फैक्ट्रियाँ , बैंक , यातायात के साधन , डाकघर , रेलवे स्टेशन , स्वास्थ्य सुविधाएँ आदि भी पाई जाती हैं ।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सामाजिक अनुसंधान की विशेषताएं,प्रकृति,उद्देश्य।

सामाजिक अनुसंधान की विशेषताएं ( 1 )सामाजिक तथ्यों क खोज - सामाजिक अनुसन्धान की सबसे प्रमुख विशेषता यह होती है कि इसका सम्बन्ध सामाजिक सन्दर्भ से होता है । सामजिक जगत् ही अनुसन्धान को सामाजिक का दर्जा प्रदान करता है । प्रत्येक नहीं कहा जा सकता है । सामाजिक का बहुत सरल आशय है अनुसन्धान मानवीय व्यवहारों , मानव समूहों , अन्तः सम्बन्धों , प्रक्रियाओं आदि मानवीय प्रघटना से सम्बन्धित होता है  ( 2 ) सामाजिक सन्दर्भ से सम्बन्धित - इसके अन्तर्गत सामाजिक यथार्थ से सम्बन्धित नवीन तथ्यों का अन्वेषण किया जाता है पुराने तथ्यों की प्रामाणिकता की जाँच जाती है , क्योंकि समय के साथ - साथ नवीन प्रविधियों के प्रादुर्भाव से अवधारणाओं व सिद्धान्तों को विकसित करने की आवश्यकता होती है । अत : पुराने तथ्यों की प्रामाणिकता का मूल्यांकन करते हुए यदि आवश्यक होता है तो इन्हें संशोधित किया जाता है ।  ( 3 ) कार्य - कारण सम्बन्धों का स्पष्टीकरण - सामाजिक अनुसन्धान में सामाजिक यथार्थ के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित तथ्यों में कार्य - कारण सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास किया जाता है और इसी आधार पर अधिक निश्चयता...

सामाजिक अनुसंधान के प्रकार

  अन्वेषणात्मक अनुसन्धान  इस अनुसन्धान का सम्बन्ध नवीन तथ्यों की खोज से है । इस अनुसन्धान के द्वारा अज्ञात तथ्यों की खोज अथवा सीमित ज्ञान के बारे में विस्तृत ज्ञान की खोज कर मानवीय ज्ञान में वृद्धि की जाती है । इस अनुसन्धान में किसी भी कार्य की रूपरेखा इस प्रकार प्रस्तुत की जाती है कि घटना की प्रकृति एवं प्रक्रियाओं की वास्तविकताओं की खोज की जा सके । सेल्टिज जहोदा कुक के अनुसार , “ अन्वेषणात्मक अनुसन्धान ऐसे अनुभव की प्राप्ति के लिए आवश्यक हैं जो अधिक निश्चित अध्ययन के लिए उपकल्पनाओं के निरूपण में सहायक होते हैं । वर्णनात्मक शोध  अनुसन्धान की वह विधि है जिसका उद्देश्य किसी भी समस्या के सम्बन्ध में यथार्थ तथ्यों का संकलन करके उस संकलन के आधार पर समस्या का विवरण प्रस्तुत करना होता है । यहाँ पर ज्यादा ध्यान इस बात पर दिया जाता है कि समस्या से सम्बन्धित जो तथ्यों का संकलन होता है वे तथ्य या सूचनाएँ वास्तविक एवं विश्वसनीय हों अगर ऐसा नहीं होगा तो वर्णनात्मक विश्लेषण वैज्ञानिक ना होकर कपोल कल्पित व दार्शनिक हो जावेगा । यदि अध्ययनकर्ता निरक्षरता के सम्बन्ध में अध्ययन कर रहा है त...

उपकल्पना के स्रोत(Sources of Hypothesis)

गुडे एवं हट्ट ने मैथड्स इन सोशियल रिसर्च में उपकल्पना के चार प्रमुख स्रोतों का उल्लेख किया है , जिन्हें उपकल्पना स्रोत की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माना जाता है , वे अग्रांकित है। ( 1 ) सामान्य संस्कृति ( General Culture ) - व्यक्तियों की गतिविधियों को समझने का सबसे अच्छा तरीका उनकी संस्कृति को समझना है । व्यक्तियों का व्यवहार एवं उनका सामान्य चिन्तन बहुत सीमा तक उनकी अपनी संस्कृति के अनुरूप ही होता है । अतः अधिकांश उपकल्पनाओं का मूल स्रोत वह सामान्य संस्कृति होती है जिसमें विशिष्ट  विकास होता है । संस्कृति लोगों के विचारों , जीवन - प्रणाली तथा मूल्यों को प्रभावित करती है । अतः प्रमुख सांस्कृतिक मूल्य प्रत्यक्षतः शोध कार्य की प्रेरणा बन जाते हैं । उदाहरण के लिए जैसे पश्चिमी संस्कृति में व्यक्तिगत सुख , भौतिकवाद ( Materialism ) , सामाजिक गतिशीलता , प्रतिस्पर्द्धा एवं सम्पन्नता आदि पर अधिक जोर दिया जाता जबकि भारतीय संस्कृति में दर्शन , आध्यात्मिकता , धर्म , संयुक्त परिवार , जाति प्रथा का गहन प्रभाव दिखाई देता है । इस प्रकार अपनी सामान्य संस्कृति भी अनुसन्धान को उपकल्पना के लिए स्रोत प्...