व्यावहारिक समाजशास्त्र की प्रकृति
( 1 ) व्यावहारिक समाजशास्त्र केवल सिद्धान्तों का ही निर्माण नहीं करता है बल्कि उनके दैनिक एवं व्यावहारिक जीवन में प्रयोग में भी रुचि लेता है ।
( 2 ) व्यावहारिक समाजशास्त्र और सैद्धान्तिक समाजशास्त्र पूर्णतः एक - दूसरे से अलग नहीं है बल्कि ये एक - दूसरे के पूरक और सहयोगी हैं ।
( 3 ) व्यावहारिक समाजशास्त्र सामाजिक समस्याओं एवं सामाजिक व्याधिकीयों को सामाजिक संगठन के अन्तर्गत ही समझने एवं उन्हें दूर करने में रुचि रखता है । सामाजिक संगठन को समझने के लिए यह आवश्यक है कि इसके व्याधिकीय पक्ष को भी समझा जाये ।
( 4 ) व्यावहारिक समाजशास्त्र सामाजिक समस्याओं के वैज्ञानिक हल में रुचि लेता है । यह एक आदर्शात्मक विज्ञान नहीं है लेकिन फिर भी इसका आचार एवं नीतिशास्त्र के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है । इस अर्थ में व्यावहारिक समाजशास्त्र यह जानकारी प्रदान करता है कि किसी समस्या का उचित हल क्या हो सकता है ? कौनसी विधियाँ उपयुक्त रहेंगी और कौनसे सुधार करने की आवश्यकता है ?
( 5 ) व्यावहारिक समाजशास्त्र केवल सामाजिक समस्याओं के समाधान एवं अध्ययन तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें सामाजिक कार्य , सामाजिक सेवाओं , सामाजिक कल्याण एवं सामाजिक पुनर्निर्माण आदि का भी समावेश किया गया है ।
( 6 ) व्यावहारिक समाजशास्त्र का सम्बन्ध भूतकाल , वर्तमानकाल एवं भविष्यकाल तीनों के अध्ययनों से है ।
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