गुडे एवं हट्ट ने मैथड्स इन सोशियल रिसर्च में उपकल्पना के चार प्रमुख स्रोतों का उल्लेख किया है , जिन्हें उपकल्पना स्रोत की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माना जाता है , वे अग्रांकित है।
( 1 ) सामान्य संस्कृति ( General Culture ) - व्यक्तियों की गतिविधियों को समझने का सबसे अच्छा तरीका उनकी संस्कृति को समझना है । व्यक्तियों का व्यवहार एवं उनका सामान्य चिन्तन बहुत सीमा तक उनकी अपनी संस्कृति के अनुरूप ही होता है । अतः अधिकांश उपकल्पनाओं का मूल स्रोत वह सामान्य संस्कृति होती है जिसमें विशिष्ट विकास होता है । संस्कृति लोगों के विचारों , जीवन - प्रणाली तथा मूल्यों को प्रभावित करती है । अतः प्रमुख सांस्कृतिक मूल्य प्रत्यक्षतः शोध कार्य की प्रेरणा बन जाते हैं । उदाहरण के लिए जैसे पश्चिमी संस्कृति में व्यक्तिगत सुख , भौतिकवाद ( Materialism ) , सामाजिक गतिशीलता , प्रतिस्पर्द्धा एवं सम्पन्नता आदि पर अधिक जोर दिया जाता जबकि भारतीय संस्कृति में दर्शन , आध्यात्मिकता , धर्म , संयुक्त परिवार , जाति प्रथा का गहन प्रभाव दिखाई देता है । इस प्रकार अपनी सामान्य संस्कृति भी अनुसन्धान को उपकल्पना के लिए स्रोत प्रदान करती है । सामान्य संस्कृति को तीन प्रमुख भागों में बाँटकर समझा जा सकता है— ( अ ) सांस्कृतिक पृष्ठभूमि ( Cultural Background ) - जिस सामान्य सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को लेकर विज्ञान का विकास होता है , वह संस्कृति स्वयं ही उपकल्पना निर्माण के विभिन्न स्रोत उपलब्ध करती है । जैसे- भारत एवं ब्रिटेन की पृथक् - पृथक् सांस्कृतिक पृष्ठभूमि ।
( ब ) सांस्कृतिक चिन्ह ( Cultural Traits ) - इसमें हम किसी समाज या संस्कृति के लोक - ज्ञान के विभिन्न अंग जैसे- लोक विश्वास , लोक - कथाएँ , लोक - साहित्य , लोक - गीत , कहावतों आदि को रख सकते हैं , जिनके आधार पर उपकल्पनाओं का निर्माण किया जा सके ।
( स ) सामाजिक - सांस्कृतिक परिवर्तन ( Socio - Cultural Changes ) - समय - समय पर उस संस्कृति , विशेषकर उसके संस्थात्मक ढाँचे के विभिन्न अंगों में परिवर्तन किया इन परिवर्तनों के कारण परिवर्तित सांस्कृतिक मूल्य भी उपकल्पना के स्रोत बन सकते हैं । अत : सामाजिक , सांस्कृतिक परिवर्तनों के आधार पर उपकल्पनाएँ निर्मित की जा सकती हैं ।
( 2 ) वैज्ञानिक सिद्धान्त ( Scientific Theories ) - वैज्ञानिक सिद्धान्त जो समय - समय पर वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत किये जाते हैं , भी कुछ उपकल्पना के स्रोत हो सकते हैं । गुडे एवं हट्ट ने तो यहाँ तक लिखा है कि , उपकल्पनाओं का जन्म स्वयं विज्ञान में होता हैं । प्रत्येक विज्ञान में अनेकों सिद्धान्त ( Theories ) होते हैं । इन सिद्धान्तों से एक विषय के विभिन्न पहलुओं के सम्बन्ध में हमें जानकारी प्राप्त होती है । इस प्रकार इन सिद्धान्तों के अन्तर्गत सम्मिलित पक्षों के सम्बन्ध में प्राप्त ज्ञान भी उपकल्पनाओं का स्रोत माना जा सकता है । एक अनुसन्धानकर्ता अपने अध्ययन के द्वारा सामान्यतः केवल नवीन सिद्धान्तों की ही रचना नहीं करता , बल्कि नवीन परिस्थितियों में पहले से स्थापित सिद्धान्तों का परीक्षण भी करता है । उक्त सिद्धान्तों के पुनर्परीक्षण से उनके अन्तर्गत विद्यमान कमियाँ एवं अशुद्धियाँ भी सामने आ जाती हैं । इस प्रकार प्रचलित सामाजिक अध्ययनों को दिशा प्रदान करते हैं एवं नवीन
उपकल्पनाओं को जन्म देते हैं । उदाहरण के लिए प्रमुख समाजशास्त्री रिजले ( Risely ) एवं नेसफील्ड ( Nesfield ) ने भारत में जाति प्रथा की उत्पत्ति का अध्ययन करने के लिए अपनी उपकल्पनाएँ बनाई । दुखम ( Durkhiem ) के द्वारा प्रस्तुत आत्महत्या ( Suicide ) का सिद्धान्त भी इसका श्रेष्ठ उदाहरण है । दुखमि के अनुसार आत्महत्या के विभिन्न कारणों तथा सामाजिक प्रभावों का विवेचन करने के पश्चात् उससे सम्बन्धित जिन नियमों का निर्माण किया जाएगा , उनका सामूहिक नाम 'आत्महत्या का सिद्धान्त " कहलाएगा ।
इस प्रकार अनेक बार पूर्व सिद्धान्तों के निष्कर्षों या सामान्यीकरणों ( Generalizations के आधार पर उपकल्पनाओं का निर्माण किया जा सकता है । इस आधार पर इन उपकल्पनाओं के द्वारा इन सिद्धान्तों की पुष्टि या इन्हें अस्वीकृत अथवा नवीन सिद्धान्तों की रचना भी की जा सकती है । अतः वैज्ञानिक सिद्धान्त उपकल्पनाओं के प्रमुख स्रोत
( 3 ) सादृश्यताएँ अथवा समस्याएँ ( Analogies ) - जब कभी दो क्षेत्रों में कुछ असमानताएँ या समरूपताएँ दिखाई देती हैं तो सामान्यतया इस आधार पर भी उपकल्पनाओं का निर्माण कर लिया जाता है अर्थात् ऐसी समरूपताएँ या सादृश्यताएँ भी उपकल्पनाओं के लिए स्रोत बन जाती हैं । ए . वुल्फ ( A. Wolf ) ने लिखा है कि सादृश्यता उपकल्पनाओं के निर्माण तथा घटना में किसी काम चलाऊ नियम की खोज के लिए अत्यन्त उपयोगी पथ - प्रदर्शन है । कभी - कभी दो तथ्यों के मध्य समानता के कारण नई उपकल्पना का जन्म होता है और इनकी प्रेरणा का कारण सादृश्यताएँ होती हैं जुलियन हक्सले ने बताया कि किसी विज्ञान की प्रकृति के सम्बन्ध में सामाजिक अवलोकन उपकल्पनाओं के आधार बन जाते हैं । ये समानताएं या तो विभिन्न व्यवहार - क्षेत्रों ( उदाहरणार्थ पशु - मनुष्य , वनस्पति मनुष्य ) में समरूपता की ओर संकेत करती हैं , या जो घटनाएँ एक ही अवसर या समय पर विभिन्न स्थानों पर घटित होती हैं , सादृश्यता की प्रवृत्ति बताती हैं । कुछ विशिष्ट व्यवहार मनुष्यों एवं पशुओं में समान हो सकते हैं । परिस्थिति विज्ञान के अन्तर्गत सामान्य मानवीय रूप अथवा क्रियाएँ समान क्षेत्रों अथवा परिस्थितियों में रहने वाले व्यक्तियों में देखी जा सकती है । पौधों में नर - मादा का परस्पर सम्बन्ध एवं व्यवहार भी पुरुषों - स्त्रियों के पारस्परिक यौन सम्बन्धों की ओर संकेत करता है । लुई पाश्चर द्वारा चेचक के टीके लगाने के सिद्धान्तों में गाँवों के चेचक से सं होने तथा उसी के सादृश्य मनुष्य के शरीर में चेचक के कीटाणु छोड़ने को उपकल्पना माना गया है । हरबर्ट स्पेन्सर ने सामाजिक उद्विकास के सिद्धान्तों को प्रस्तुत करने के लिए उपकल्पना का निर्माण किया था वह इस सादृश्य पर आधारित थी कि समाज की उत्पत्ति , विकास और विनाश , जीव रचना के जन्म विकास और मृत्यु के ही समान हैं ।
( 4 ) व्यक्तिगत अनुभव ( Personal Experiences ) - गुंडे एवं हट्ट के मतानुसार व्यक्तिगत प्रकृति - वैशिष्ट्य अनुभव भी उपकल्पना के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं । संस्कृति विज्ञान एवं समरूपता ही उपकल्पना निर्माण के लिए आधार सामग्री नहीं जुटाते बल्कि व्यक्ति का अपना अनुभव भी उपकल्पना निर्माण में महत्त्वपूर्ण होता है । सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति से कुछ विशिष्ट अनुभव प्राप्त करता है और उसी अनुभव के आधार पर वह उपकल्पना का निर्माण कर सकता है । न्यूटन ( Newton ) ने पेड़ से गिरने वाली सेव ( Apple ) को देखकर ( जो एक सामान्य प्रकृति - वैशिष्ट्य अनुभव था ) गुरुत्वाकर्षण के महान् सिद्धान्त ( Law of Gravity ) की रचना की । इसी प्रकार डार्विन ( Darwin ) को जीवन संघर्ष एवं उपयुक्त व्यक्ति की जीवन क्षमता के सिद्धान्त स्थापित करने में अपने व्यक्तिगत अनुभवों पर ही उपकल्पनाओं का निर्माण करना पड़ा था । माल्यस ( Malthus ) ने भी जनसंख्या की तीव्र एवं खाद्य पदार्थों की धीमी वृद्धि का सिद्धान्त अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर बनाया । अपराधशास्त्री लोम्बोसो ( Lombrosa ) ने सेना के एक चिकित्सक के रूप में अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर एक उपकल्पना का निर्माण किया कि अपराधी जन्मजात होते हैं एवं अपनी शारीरिक विशेषताओं में वे सामान्य व्यक्तियों से भिन्न होते हैं । सर हरबर्ट रिजले ने 1901 में जनगणना अधीक्षक के रूप में जिस विशिष्ट ढंग से भारतीय जनता को देखा तथा उनके बारे में अनुभवों को प्राप्त किया वह उनके जाति के प्रजातीय सिद्धान्त ( Racial Theory of Caste ) की उपकल्पना की आधारशिला बनी ।
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