सामाजिक स्तरीकरण का महत्त्व
• सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक होता है ।
• मानव की मनोवृत्तियों को निर्धारित करता है ।
• व्यक्ति को प्रस्थिति एवं भूमिका का निर्धारण
• सहयोग की भावना को बढ़ाना तथा संघर्ष से बचाव ।
• अधिक कार्य करने के लिए प्रोत्साहना
• समाजीकरण में सहायक ।
• सामाजिक प्रगति में सहायक ।।
• सामाजिक व्यवस्था और संगठन बनाए रखने में सहायक ।
सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताएँ
• स्तरीकरण समाज का विभिन्न स्तरों में विभाजन है । इन स्तरों में उच्चता एवं निम्नता का होना आवश्यक है ।
• जब तक स्तरीकृत समूहों में स्थिरता न आ जाए , उसे स्तरीकरण की संज्ञा नहीं दी जा सकती है ।
• सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित समूह परस्पर सम्बद्ध होते हैं । सामाजिक स्तरीकरण की प्रकृति सामाजिक तथा सांस्कृतिक दोनों होती हैं ।
• स्तरीकरण एक प्रकार का प्रतिफल है ।
• स्तरीकरण संघर्ष का परिणाम है । यह संघर्ष समाज में शक्ति , धन , प्रतिष्ठा के कारण होता है , जिसे सभी व्यक्ति अधिक - से - अधिक पाना चाहते हैं ।
• सामाजिक स्तरीकरण गतिशील होता हैं।
सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार
स्तरीकरण के दो प्रकार है
1. बन्द स्तरीकरण यह वंशानुगत या अन्म के आधार पर बना होता है , जैसे - जनजाति तथा कृषक समाज
2. मुक्त स्तरीकरण यह आधुनिक समाज में पाया जाता है । इसमें योग्यता एवं कुशलता को महत्त्वपूर्ण माना गया है ।
सामाजिक स्तरीकरण के दोष
• सामाजिक विघटन को प्रोत्साहन ।
• निराशा एवं विद्रोह को प्रोत्साहन ।
• समाज को विसंयोजित करना ।
• सामाजिक दूरी का बढ़ना ।
• असुरक्षित महसूस करना ।
सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक असमानता में अन्तर
सभी समाजों में चाहे वह सरल हो या जटिल कुछ - न - कुछ सामाजिक असमानताएँ अवश्य पाई जाती हैं । सामाजिक असमानता जैविक और सामाजिक दोनों रूपों में बनी हुई है । इसलिए जनजातियों में केवल असमानता पाई जाती है , न कि स्तरीकरण । लेकिन वही भारतीय जाति प्रणाली स्तरीकरण की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है ।
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