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समाजशास्त्र में फेनोमेनोलॉजी

फेनोमेनोलॉजी (Phenomenology) का अर्थ

प्रघटनावादी उपागम को अंग्रेजी में फिनोमिनोलॉजी कहा जाता है।  अंग्रेजी भाषा का यह शब्द फीनोमिनन (phenomenon) ग्रीक भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ प्रकट दर्शन से है। चीजें जैसी चेतना में दिखाई देती है, उसे उसी अर्थ में लेना 

समाज विज्ञान विश्व कोष में इसके सम्बन्ध में लिखता है यह दर्शनशास्त्र की एक विधि है जिसकी शुरुआत मनुष्य से होती है और मनुष्य को स्वयं के अनुभव से जो कुछ प्राप्त होता है, इसे इनमें सम्मिलित किया जाता है।  घटनाएं अपने वास्तविक स्वरूप में जैसी है, कर्ता उन्हें समझता है।  

फेनोमेनोलॉजी की परिभाषा

फिनोमिनोलॉजी को परिभाषित करते हुए समाज वैज्ञानिक कहते हैं कि यह ज्ञान की एक शाखा है, जो अमूर्तता को नही बल्कि वास्तविकता के अवलोकन को बल देती है।

जॉर्ज पास्थस ( George Pasthus ) ने अपनी पुस्तक फिनोमिनोलॉजीकल सोशियोलॉजी में इसे एक पद्धति , उपागम तथा दर्शन का नाम दिया है ।

 जॉन रैक्स ( John Racks ) इसे परिभाषित करते हुए लिखते हैं कि " प्रघटनाशास्त्र एक विशेष प्रकार का अन्तर्ज्ञान है , जिसके द्वारा वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप को एवं सामाजिक जीवन के तथ्यों के बारे में सिद्धान्तों को निर्मित किया जाता है । 

अल्फ्रेड शूट्ज ( Alfread Schutz ) का कहना है कि प्राकृतिक विधियों द्वारा सामाजिक यथार्थ को समझा जाना मुश्किल है , क्योंकि सामाकि प्रघटनाएं एक तो जटिल है , दूसरी सामाजिक घटनाओं के अध्ययन के समय व्यक्ति द्वारा समाज के दिए गए अर्थ को हम अपनी इच्छानुसार बदल सकते हैं ।

एडमंड हसरेल ( Edmund Hussrel ) जो कि इस सिद्धान्त के प्रथम प्रणेता थे , ने अपनी कृतियों में बताया कि यह एक अध्ययन की वह विधा है , जिसमें उन वस्तुओं को जानने की रूचि है , जिनका बोध व्यक्तियों को अपनी इन्द्रियों द्वारा होता है । इसमें कहीं पर भी अटकलबाजी नहीं है , हसरेल तो यहां तक कहते हैं कि समाजशास्त्र में अटकलबाजी को हमेशा दूर रखना चाहिए । 

समाजशास्त्र में फिनोमिनोलॉजी उपागम

इसके विकास की दो प्रमुख धाराएं हैं । एक धारा यूरोप की है जिसके प्रवर्तक हसरेल और शूट्ज तथा दूसरी धारा जो अमेरिका में विकसित हुई उसके प्रवर्तक जॉर्ज सान्त्याना है। कई विचारक यह कहते हैं कि यह सिद्धान्त नहीं है बल्कि यह घटना - क्रिया समाजशास्त्र से अधिक कुछ नहीं है । घटनाक्रम उपागम की सम्पूर्ण भूमिका दर्शनशास्त्रीय है । यूरोप की सैद्धान्तिक पृष्ठभूमि से इसका जन्म हुआ है । मैक्स वेबर , मार्क्स , दुर्थीम आदि विद्वानों की सैद्धान्तिक पृष्ठभूमि से यूरोप में हसरेल और शूट्ज ने इस उपागम को विकसित किया है । 1939 में शूट्ज ने इस ज्ञान की शाखा को अमेरिका के अन्त : क्रियावाद से जोड़ दिया और इस तरह इस उपागम का विकास हुआ ।

समाजशास्त्र में फिनोमिनोलॉजी की विशेषतायें

संभवत :  फिनोमिनोलॉजी उपागम के पीछे सबसे प्रमुख मान्यता यह है कि समाज या समाजशास्त्री नहीं बल्कि मानव प्राणी ही वे कार्य करते हैं जो समाज को बनाते हैं । व्यवहार तथा जो भी व्यावहारिक कानून अस्तित्व रखते हैं उनका स्त्रोत विषयगत आदेशों एवं मानव मनोविज्ञान की रचना में हैं । लोग अपनी दिन - प्रतिदिन की प्रतिक्रियाओं को अपने सामाजिक जीवन में कैसे रचते हैं , यह बात विशेष रूप से एथनो पद्धति में भी देखी जाती है

  • फिनोमिनोलॉजीकल समाजशास्त्र के प्रमुख उपागम इसी आधार पर समाज के निचोड़ का पता लगाया जा सकता है एवं सामाजिक व्यवहार तथा सामाजिक सम्बन्ध समझे जा सकते हैं । 
  • फिनोमिनोलॉजीकल उपागम के द्वारा हम जो निष्कर्ष निकालते हैं उनमें पूर्ण निश्चितता होती है और वे निर्णयात्मक होते हैं । 
  • फिनोमिनोलॉजीकल उपागम के द्वारा सामाजिक जीवन के तथ्यों का पता लगाया जा सकता है । उनकी जन्मजात और लचीली प्रवृत्तियों पर निर्भर होते हैं । 
  • फिनोमिनोलॉजीकल उपागम ‘ एनलाइटमेन्ट मॉडल ' से मिलते - जुलते हैं जिसमें उदारवादी व्यक्तिवाद को महत्त्व दिया गया है ।

फिनोमिनोलॉजी में एडमंड हसरेल का योगदान

हसरेल ने समाजशास्त्र में प्रघटनावादी उपागम के सम्बन्ध में दो पुस्तकें प्रकाशित की । उनकी पहली पुस्तक फिनोमिनोलॉजी एण्ड द क्राइसिस ऑफ वेस्टर्न फिलोसॉफी 1936 में प्रकाशित हुई , जिसे अंग्रेजी में अनुवाद कर 1965 में प्रकाशित किया । दूसरी पुस्तक आइडियाज : जनरल इन्ट्रोडेक्शन टू प्योर फिनोमिनोलॉजी मूल प्रकाशन 1913 एवं बाद में 1969 में हुआ । हसरेल ने जो विचार प्रस्तुत किये उसी को आगे शूटज ने संशोधित किया । 

हसरेल ने प्रघटनाशास्त्र को अध्ययन की एक नवीन विधि के रूप में स्पष्ट किया । जिसमें वैज्ञानिक पद्धति की तरह न तो किसी उपकल्पना का निर्माण करना , न किसी कथन के आधार पर निष्कर्ष तक पहुंचना होता है । इस उपागम में अध्ययनकर्ता को अवलोकन , वर्णन , वर्गीकरण के सहारे वर्णन करना होता है । यह प्रकृति में संरचना का अवलोकन करता है , जो प्रयोगात्मक विधि में सम्भव नहीं है । इन्होंने इस उपागम पर गंभीरता से चिन्तन मनन किया । कुछ निश्चित तर्कों के आधार पर उस समय प्रचलित समाजशास्त्र के अध्ययन विधि की आलोचना की । आलोचना के परिणामस्वरूप उन्होंने कहा यह एक दर्शन , अध्ययन पद्धति नवीन समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण है । उनके द्वारा प्रतिपादित समाजशास्त्र एक दर्शनशास्त्र है । एक दर्शनशास्त्र कार्यक्रम में मानवशास्त्र के आधार पर वास्तविकता ज्ञात करता है ।

फिनोमिनोलॉजी में अल्फ्रेड शूट्ज का योगदान

शुट्ज के विचारों के अनुसार अपने क्षेत्र की दृष्टि में फिनोमिनोलॉजीकल समाजशास्त्र में संभावनायें बहुत हैं । समस्याओं को सुलझाने में यह व्यक्ति , अनुभव एवं परिस्थितियों के जटिल मनोवैज्ञानिक फिनोमिनोलॉजीकल विश्लेषण के अतिरिक्त , विस्तृत समाजशास्त्रीय अध्ययन की पृष्ठभूमि भी प्रस्तुत कर सकता है । फिनोमिनोलॉजीकल उपागम समाजशास्त्रीय विधा के प्रत्येक आवरण को छू सकती है।


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