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religion in Sociology

धर्म (religion) क्या है ?

मनुष्य सदैव से ही सांसारिक घटनाओं को बड़े रहस्यपूर्ण ढंग से देखता एवं समझता आया है । कुछ समस्यायें ऐसी होती हैं जो मनुष्य के नियन्त्रण में रहती हैं एवं कुछ समस्यायें ऐसी होती हैं जो मनुष्य के नियन्त्रण से परे होती हैं । इसी के परिणामस्वरूप मनुष्य का यह विश्वास रहा है कि एक अलौकिक शक्ति संसार की सम्पूर्ण घटनाओं का संचालन करती है । इसी शक्ति को मनुष्य ने अपनी श्रद्धा एवं आस्था का आधार निर्धारित किया । आदिकालीन मनुष्य का यह विश्वास था कि इस अलौकिक शक्ति को प्रसन्न करने से अनेक संकटों को दूर किया जा सकता है । आगे चलकर मनुष्य ने अलौकिक शक्ति के प्रति इस विश्वास को ही धर्म कहा । 

धर्म का अर्थ तथा परिभाषायें 
( Meaning and Definitions of Religion ) 

धर्म क्या है ? के विषय में प्रसिद्ध समाजशास्त्री 

एडवर्ड टायलर ( Edward Tylor ) का मत है कि “ धर्म आध्यात्मिक शक्ति में विश्वास है । " अलौकिक शक्ति के इस विश्वास को मानव पूजा , आराधना एवं कर्मकाण्ड द्वारा प्रकट करता है । धर्म में यह विश्वास किया जाता है कि अलौकिक शक्ति , प्रकृति एवं मानव जीवन को नियन्त्रित एवं निर्देशित करती है । 

मैलिनोवस्की के अनुसार , धर्म क्रिया की विधि है और साथ ही विश्वासों की एक व्यवस्था भी है । यह एक समाजशास्त्रीय घटना के साथ - साथ एक व्यक्तिगत अनुभव भी है । शब्द - व्युत्पत्ति के आधार पर यदि धर्म शब्द की व्याख्या की जाए तो धर्म शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत भाषा में ' धृ ' शब्द से मानी जाती है जिसका अर्थ है - ' धारण करना ' अर्थात् सभी जीवों के प्रति मन में दया धारण करने को ही धर्म कहा गया है । हिन्दू धर्म - ग्रन्थों में तामस एवं राजस गुणों के स्थान पर सात्विक गुणों को धारण करने को ही धर्म माना गया है । 

स्टीफेन फचस ( Stephen Fuchs ) – ने लिखा है कि रिलिजन ( धर्म ) शब्द रेलिगेयर ( Religare ) से बना है जिसका अर्थ है - बांधना अर्थात् मनुष्य को ईश्वर से सम्बन्धित करना ।

इस प्रकार स्पष्ट है कि शब्द - व्युत्पत्ति के आधार पर धर्म शब्द के दो प्रकार के अभिप्राय निकलते हैं - एक भारतीय संदर्भ में धर्म जो कि प्राणिमात्र के प्रति दया करने के भाव को धारण करना है , दूसरा पाश्चात्य संबंध में धर्म - जो कि ईश्वर से सम्बन्धित है । विभिन्न विद्वानों ने धर्म की भिन्न - भिन्न परिभाषायें दी हैं । कुछ प्रमुख परिभाषायें निम्नलिखित हैं 

( 1 ) बील्स एवं हाइजर के अनुसार , “ धर्म मुख्य रूप से विश्व की व्यवस्थित धारणा का परिणाम है । यह मनुष्य को भविष्यवाणी करने , घटनाओं को समझने तथा अयोग्यता द्वारा निर्मित चिंताओं को शान्त करने का एक यंत्र है , जो स्पष्टतया प्राकृतिक नियमों का अनुरूप बनाता है । " 

( 2 ) मैट के अनुसार , “ धर्म आदिकालीन मानव की बौद्धिक कल्पनाओं का परिणाम है । " 

( 3 ) मदान एवं मजूमदार के अनुसार , “ धर्म किसी भय की वस्तु अथवा शक्ति का मानवीय परिणाम है , जो पारलौकिक है और इन्द्रियों से परे है , यह व्यवहार अभिव्यावित है तथा अनुकूलन का रूप है जो लोगों को अलौकिक शक्ति की धारणा से प्रभावित करता है । " 

( 4 ) सर जेम्स फ्रेजर के अनुसार , “ धर्म से - मैं मनुष्य से श्रेष्ठ उन शक्तियों की सन्तुष्टि या आराधना समझता हूँ जिनके सम्बन्ध में यह विश्वास किया जाता है कि वे प्रकृति और मानव जीवन के मार्ग को दिखाती और नियन्त्रित करती हैं । " 

( 5 ) क्यूबर के मतानुसार , “ धर्म सांस्कृतिक जीवन से संबंधित व्यवहार का वह प्रतिमान है जिसका निर्माण पवित्र विश्वासों , विश्वासों से सम्बन्धित उद्वेगपूर्ण विचारों तथा उन्हें व्यक्त करने वाले बाहरी आचरणों आदि से होता है । "

( 6 ) जॉनसन के शब्दों में , “ धर्म कम या अधिक मात्रा में अलौकिक शक्तियों , तत्त्वों तथा आत्मा से संबंधित विश्वासों और आचरणों की एक संगठित व्यवस्था है । ” 

( 7 ) पी . हॉनिगशीम के अनुसार , “ प्रत्येक उस मनोवृत्ति को धर्म कहेंगे जो इस विश्वास पर आधारित है कि अलौकिक शक्तियों का अस्तित्व है तथा उनसे सम्बन्ध स्थापित करना न केवल महत्त्वपूर्ण है , वरन् संभव भी है । " उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि धर्म के लिए तर्क की अपेक्षा विश्वास अधिक उपयोगी है क्योंकि धर्म का निर्माण विभिन्न विश्वासों एवं संस्कारों के द्वारा होता है ।

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