अनुसन्धान (शोध) का मतलब ' बार बार खोजने ' से हैं। जब कोई भी खोज सामाजिक जीवन , सामाजिक घटनाओं अथवा सामाजिक जटिलताओं से सम्बन्धित होती है , तब उसे सामाजिक अनुसन्धान का नाम दिया जाता हैं । इसमें इन सबके सम्बन्ध में यथार्थ ज्ञान प्राप्त किया जाता है । इस हेतु आनुभविक या अनुभवसिद्ध तथ्यों ( Empirical Facts ) का पता लगाया जाता है , निरीक्षण , परीक्षण , वर्गीकरण तथा सत्यापन के आधार पर सामाजिक घटनाओं के कारणों को ढूंढ निकाला जाता है । साथ ही मानव व्यवहार से सम्बन्धित सामान्य नियमों का पता लगाया जाता है । सामाजिक अनुसन्धान में वैज्ञानिक विधि को काम में लेते हुए अवलोकन ( Observation ) तथा सत्यापन ( Verification ) का विशेषतः सहारा लिया जाता है
सामाजिक अनुसन्धान की परिभाषा
सी.ए. मोजर ने इसे परिभाषित करते हुए लिखा है- " सामाजिद घटनाओं तथा समस्याओं के सम्बन्ध में नवीन ज्ञान प्राप्त करने के लिए की गई व्यवस्थित छानबीन को ही हम सामाजिक अनुसन्धान कहते हैं । "
बोगार्डस की परिभाषा में व्यक्तियों तथा उसके परस्पर सम्बन्धों पर महत्त्व दिया गया है । आपके अनुसार सामाजिक अनुसन्धान किसी समुदाय में रहने वाले व्यक्तियों के मध्य विद्यमान प्रक्रियाओं की जांच है ।
पी.वी. यंग ने लिखा है , सामाजिक अनुसन्धान को ऐसे वैज्ञानिक प्रयल के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसका उद्देश्य तार्किक एवं क्रमबद्ध पद्धतियों के द्वारा नवीन तथ्यों की खोज अथवा पुराने तथ्यों की परीक्षा और सत्यापन उनके क्रमों , पारस्परिक सम्बन्धों , कार्य - कारण की व्याख्या एवं उन्हें संचालित करने वाले स्वाभाविक नियमों का विश्लेषण करना है ।
फिशर ने लिखा है किसी को हल करने या किसी उपकल्पना ( Hypothesis ) की जाँच करने अथवा नवीन घटनाक्रम तथा उसमें पाए जाने वाले नए सम्बन्धों की खोज करने हेतु उपर्युक्त पद्धतियों का किसी सामाजिक स्थिति में जो प्रयोग किया जाता है उसे ही सामाजिक अनुसन्धान कहा जाता है
सामाजिक अनुसन्धान का क्षेत्र (scop)
सामाजिक शोध के अध्ययन क्षेत्र को एक तथ्य घटना या क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं किया जा सकता है । सामाजिक शोधकर्ता प्रत्येक उस घटना या अवधारणा का अध्ययन करता है जो कि समाज सम्बन्धित है । वह पहले से स्थापित नियमों का पुनर्भध्ययन करके उसके बारे में अपने निष्कर्ष देता है । किसी भी समस्या के पीछे छिपे कारणों को ढूंढना भी सामाजिक शोध के अध्ययन क्षेत्र में आता है । कार्य - कारण सम्बन्ध
खोजने का यह अर्थ नहीं है कि वह इनके निवारण के विकल्प या समाधान खोजता है । वह तो केवल कार्य - कारण सम्बन्ध का अध्ययन करता है । सामाजिक घटनाओं का नियन्त्रित अवस्था में किया जाने वाला प्रायोगिक प्रकृति का शोध भी इसके विषय क्षेत्र में आता है । यह कहा जा सकता है कि सामाजिक शोध का अध्ययन क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है तथा मानव - समाज के प्रत्येक पहलू का विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन इसमें किया जाता है ।
सामाजिक अनुसन्धान की उपयोगिता
( 1 ) सामाजिक विज्ञानों की उन्नति में सहायक - सामाजिक अनुसन्धान द्वारा सामाजिक घटनाओं के बारे में अधिक वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त होती है । सामाजिक अनुसन्धान द्वारा अध्ययन की नवीन प्रविधियों व उपकरणों का विकास किया जाता है । इन दोनों ही स्थितियों में एक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र के विकास में योग मिलता है । क्योंकि इससे सामाजिक घटनाओं में नियन्त्रण बढ़ता जाता है । इसके अतिरिक्त सामाजिक अनुसन्धान द्वारा प्राप्त निष्कर्ष अन्यत्र सामाजिक विज्ञानों के विकास में भी योग देते हैं ।
( 2 ) सैद्धान्तिक महत्त्व - सामाजिक अनुसन्धान समाज विज्ञानों का आधार है जिससे विभिन्न विज्ञानों हेतु अधिकाधिक प्रमाणिक सामग्री प्राप्त होती है । अनुसन्धान द्वारा प्राप्त ज्ञान समाज व सामाजिक जीवन के बारे में वृद्धि करता है जिससे सामाजिक क्रियाओं को समझने में सहायता मिलती है ।
( 3 ) भविष्यवाणी में सहायक - सामाजिक अनुसन्धान द्वारा प्राप्त ज्ञान के आधार पर वर्तमान को समझकर भविष्य में होने वाली अनेक सामाजिक घटनाओं व दशाओं का पता लगाकर उनके बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है ताकि उनके साथ सफलतापूर्वक समायोजन किया जा सके ।
( 4 ) प्रशासन एवं समाज सुधार में उपयोगिता - प्रशासनिक सेवाओं में उच्च पदों पर आसीन अधिकारी विभिन्न परिस्थितियों में अपनी उचित भूमिका तभी निर्वाह कर सकते हैं जब उन्हें पूर्णतया सही जानकारी हो । अतः विभिन्न समस्याओं के सफल समाधान हेतु सामाजिक अनुसन्धान अत्यन्त आवश्यक व उपयोगी है ।
( 5 ) सामाजिक समस्याओं को हल करने में सहायक - देश में व्याप्त विभिन्न समस्याएँ जैसे - बेकारी , निर्धनता , मादक द्रव्य , व्यसन , बाल - अपराध , भ्रष्टाचार , दहेज आदि ने देश की प्रगति के मार्ग में बाधा उत्पन्न की है । इन समस्याओं को सही परिप्रेक्ष्य में समझने हेतु आवश्यक जानकारी सामाजिक अनुसन्धान से प्राप्त होती है ।
सामाजिक अनुसन्धान का महत्व
( 1 ) अज्ञानता का नाश - समाज में अनेक समस्याएँ व्याप्त हैं क्योंकि हम उन समस्याओं से अनभिज्ञ हैं अर्थात् हमें उनके बारे में कुछ भी जानकारी नहीं है । सामाजिक अनुसन्धान द्वारा इन समस्याओं का वैज्ञानिक अध्ययन कर उनके कारणों व निवारणों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सके । सामाजिक अनुसन्धान में हमेशा समाज को तात्कालिक प्रत्यक्ष लाभ नहीं होता परन्तु इससे हमारे सामाजिक ज्ञान में वृद्धि अवश्य होती है ।
( 2 ) नवीन विचार विकसित करना - सामाजिक अनुसन्धान के ही परिणामस्वरूप अनेक नवीन तथ्य विकसित होते हैं । इन्हीं से नये विचारों का विकास होता है । आधुनिक भारतीय समाज में विशेष रूप से नये विचारों की आवश्यकता अनुभव की जाती है । इस प्रकार के अनुसन्धान के द्वारा हमारे समाज में अन्धविश्वास , रूढ़िवादिता तथा वैचारिक विभिन्नताएँ कम हो सकती हैं । मनुष्य में रचनात्मक शाक्ति को प्रोत्साहित करने के लिए जिन नये विचारों की आवश्यकता होती है वे सामाजिक अनुसन्धान पर ही आधारित है ।
( 3 ) सामाजिक समस्याओं का अध्ययन - किसी समूह में पायी जाने वाली सामाजिक समस्याओं को भली प्रकार समझने में सामाजिक अनुसन्धान अत्यन्त उपयोगी होता है । यदि सही रूप में अनुसन्धान किया गया हो तो यथार्थता या सत्यता को प्राप्त कर सकना सम्भव होगा । सामाजिक अनुसन्धान भी वैज्ञानिक आधार पर आयोजित किया जाने के कारण उसमें प्रामाणिकता तथा विश्वसनीयता अधिक होती है
( 4 ) समाज कल्याण में सहायक - भारत एक कल्याणकारी देश है । यहाँ समाज में चोरी , डकैती , ठगी और घूसखोरी , वैश्यावृत्ति आदि व्याप्त हैं । ये सब अपराध व बुराइयाँ तभी दूर हो सकती हैं जब हमें इन सब बुराइयों के मूल आधार की वैज्ञानिक स्तर पर जानकारी हो । इसके लिए सामाजिक अनुसन्धान का सहारा लेना ही आवश्यक है । इस प्रकार सामाजिक अनुसन्धान समाज कल्याण सहायक है ।
( 5 ) सामाजिक प्रगति में सहायक - ज्ञान स्वतः ही समाज के विकास में सहायक होता है । पिछड़े समाज में अनेक प्रकार के अंधविश्वास व रूढ़ियाँ प्रचलित हैं , इसी प्रकार उनकी संस्कृति भी दूषित होती है । वे जीवन के श्रेष्ठ व महत्त्वपूर्ण मूल्यों से अनभिज्ञ रहते हैं और इन सबको केवल सामाजिक अनुसन्धान द्वारा ही दूर किया जा सकता ।
( 6 ) सामाजिक नियन्त्रण में सहायक - सामाजिक अनुसन्धान का एक अन्य उद्देश्य सामाजिक नियन्त्रण भी है । तीव्र परिवर्तनों के कारण सामाजिक व्यवस्था में असन्तुलन उत्पन्न हो गया है और चूँकि व्यक्ति और समाज दोनों एक - दूसरे को प्रभावित करते हैं अतः सामाजिक असन्तुलन के कारण वैयक्तिक , पारिवारिक व सामाजिक विघटन बढ़ा है । अत : यदि हमें मानव के सामाजिक व्यवहार की पूर्ण जानकारी हो तो समाज की प्रगति को नियन्त्रित किया जा सकता ।
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