सामाजिक प्रस्थिति क्या है
सामाजिक प्रस्थिति क्या है ? निःसंदेह समाज एक जटिल सामाजिक व्यवस्था है , जिसको बनाये रखने हेतु सभी व्यक्ति सामाजिक - सांस्कृतिक व्यवस्था में अपने - अपने कार्य करते रहते हैं । सामाजिक संगठन को बनाये रखने हेतु प्रत्येक व्यक्ति को जो पद या स्थान प्रदान किया जाता है , वही प्रस्थिति या स्थिति के नाम से सम्बोधित की जाती है । यह उसकी भूमिका पर निर्भर करता है कि वह किन प्रस्थितियों को ग्रहण करेगा और किन प्रस्थितियों को नहीं ।
उदाहरण के लिए एक अध्यापक कॉलेज में है तो उसकी प्रस्थिति लेक्चरार की है । जब वह किसी ' मित्र ' से बात करता है तो उसकी प्रस्थिति ' मित्र ' की है । घर वह अपनी पत्नी ' से बात करता है तो उसकी प्रस्थिति ' पति ' की है । जब वह अपने बच्चों से बात करता है तो उसकी प्रस्थिति ' पिता ' की होती है और जब वह अपने पिता से बात करता है तो उसकी प्रस्थिति ' पुत्र ' की हो जाती है । इस प्रकार एक दिन में वह अध्यापक , मित्र , पति , पिता एवं पुत्र आदि सब हैं । लेकिन इन्हें भी उसकी सभी प्रस्थितियां नहीं मानी जा सकती । ये तो केवल उसकी कुछ प्रस्थितियाँ हैं । यदि हम उसके जीवन में आने वाली समस्त प्रस्थितियों को गिनने का प्रयास करें तो शायद यह सम्भव भी नहीं होगा ।
सामाजिक प्रस्थिति की परिभाषा
इलियट तथा मैरिल के अनुसार किसी व्यक्ति की स्थिति का तात्पर्य उस पद से है , जो वह समूह में अपने लिंग , आयु , परिवार , वर्ग , व्यवसाय , विवाह और उपलब्धियों के आधार पर प्राप्त करता है
लिंटन के अनुसार किसी व्यवस्था विशेष में किसी व्यक्ति विशेष को किसी समय विशेष में जो स्थान प्राप्त होता है , वही उस व्यवस्था के संदर्भ में उस व्यक्ति की स्थिति कहलायेगी ।
लेपियर के अनुसार समाज में व्यक्ति का जो दर्जा होता है , उसे ही हम प्रस्थिति कहते हैं
रॉबर्ट बीरस्टीड के अनुसार , “ प्रस्थिति समाज या किसी एक स्थिति मात्र है । ” हर समाज और हर समूह में ऐसी बहुत - सी प्रस्थितियाँ होती हैं और हर व्यक्ति ऐसी बहुत - सी प्रस्थितियों में रहता है - वास्तव में जितने समूहों से उसका सम्बन्ध है उतनी ही प्रस्थितियाँ उसके साथ है । समूह की किस्म के साथ उसकी प्रस्थिति बदल जायेगी , उदाहरण के लिए एक संगठित समूह में उसकी प्रस्थिति एक तरह की होगी और दूसरे में दूसरी तरह की ।
सामाजिक प्रस्थिति के प्रकार
प्रदत्त प्रस्थिति (Ascribed status)- प्रदत्त प्रस्थिति वह है जिसको प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को किसी प्रकार के प्रयत्न नहीं करने पड़ते बल्कि सामाजिक व्यवस्था के अनुसार उसे यह स्थिति अपने आप ही प्राप्त होती है । व्यक्तित्व के उचित विकास के लिए भी यह आवश्यक है कि व्यक्ति को समाज द्वारा ऐसी स्थितियाँ प्रदान की जायें जिससे वह समाज से अधिकाधिक अनुकूलन कर सके । यही कारण है कि समाज बच्चे को उसकी आयु , लिंग , सामाजिक सम्बन्धों तथा नातेदारी के आधार को ध्यान में रखते हुए स्वयं कुछ स्थितियाँ प्रदान करता है । इस बारे में यह समस्या उत्पन्न हो सकती है कि बालक के भविष्य को जाने बिना उसे यह प्रस्थिति कैसे दी जा सकती है । वास्तव में समाज द्वारा प्रदान की जाने वाली स्थितियाँ परम्परागत नियमों के आधार पर निर्धारित होती हैं लेकिन बाद में व्यक्ति का उचित विकास होने से उन्हें स्थायित्व मिल जाता है । प्रदत्त प्रस्थिति के आधार-(1) लिंग भेद (2) आयु भेद (3) नातेदारी
अर्जित प्रस्थिति (Achieved status)– अर्जित स्थिति व्यक्ति की कुल स्थिति का वह भाग है जिसे वह अपने प्रयत्नों और योग्यता से समाज से प्राप्त करता है । प्रत्येक समाज में सभी सदस्यों को मिलने वाली सफलता अथवा असफलता समान नहीं होती । कुछ व्यक्तियों को समाज में कोई भी प्रदत्त प्रस्थिति न मिलने पर भी वे आश्चर्यजनक रूप से सफलता प्राप्त कर लेते हैं जबकि कुछ व्यक्ति समाज द्वारा प्रदत्त स्थितियों की प्रतिष्ठा बनाये रखने तक में असफल रह जाते हैं । इस प्रकार व्यक्ति की योग्यता तथा प्रयलों पर भी उसकी स्थिति निर्भर करती है । समाज में साधारण रूप से योग्य , बुद्धिमान , मौलिक विचार रखने वाले तथा दयालु व्यक्तियों को सभी व्यक्ति अधिक महत्त्व देते हैं । ऐसे व्यक्ति समाज के द्वारा कोई भी सुविधाएँ न मिलने पर भी वे नेता या उद्योगपति जैसी स्थितियों को अर्जित कर लेते हैं ।
कुछ प्रस्थितियाँ ऐसी होती हैं जिन्हें समाज प्रदान नहीं कर सकता बल्कि उन्हें प्रयत्न करके ही अर्जित करना पड़ता है । जैसे परिवार व्यक्ति को डॉक्टर , वकील इत्यादि की प्रस्थिति नहीं दे सकता बल्कि व्यक्ति अध्ययन करके अपने निजी प्रयलों के आधार पर ही प्रस्थितियों को अर्जित कर सकता है , इनका आधार जन्म नहीं होकर निजी कुशलता , योग्यता तथा प्रयत्न होते हैं । इस तरह अर्जित प्रस्थिति वह है जो व्यक्ति अपने प्रयत्न , मेहनत , पराक्रम , योग्यता तथा बौद्धिक क्षमता के आधार पर प्राप्त करता है । अर्जित प्रस्थिति के आधार - (1) सम्पत्ति (2) व्यवसाय (3) शिक्षा (4) विवाह (5) उपलब्धियाँ (6) राजनीतिक सत्ता।
अर्जित एवं प्रदत्त प्रस्थितियों में सम्बन्ध
प्रत्येक समाज में दोनों प्रकार की प्रस्थितियाँ पायी जाती हैं । यद्यपि ये दोनों प्रस्थितियाँ एक - दूसरे की विरोधी हैं परन्तु कार्य की दृष्टि से एक - दूसरे की पूरक हैं , समाज के लिए दोनों प्रस्थितियाँ महत्त्वपूर्ण हैं । बालक को जन्म से ही उच्च प्रस्थितियाँ प्रदान की जाती हैं जिनसे यह निश्चित होता है कि समाजीकरण के द्वारा उसके व्यक्तित्व का कितना विकास संभव है । धीरे - धीरे योग्यता एवं मेहनत के आधार पर वह अन्य प्रस्थितियाँ अर्जित करता है ।
अर्जित एवं प्रदत्त प्रस्थिति में अन्तर
( 1 ) अर्जित प्रस्थिति में व्यक्ति अपने गुणों , परिश्रम एवं कुशलता के आधार पर वह स्तर प्राप्त करता है जबकि प्रदत्त प्रस्थिति व्यक्ति को समाज द्वारा प्रदान की जाती है , जिसके लिए व्यक्ति को विशेष परिश्रम की आवश्यकता नहीं पड़ती ।
( 2 ) अर्जित प्रस्थिति का सम्बन्ध आर्थिक व्यवस्था से होता है जबकि प्रदत्त प्रस्थिति समाज की सांस्कृतिक व्यवस्था और सामाजिक मूल्यों के अनुसार निर्धारित होती है।
( 3 ) अर्जित प्रस्थिति में व्यक्तिवादिता को प्रोत्साहन मिलता है जबकि प्रदत्त प्रस्थिति में सामूहिकता को प्रोत्साहन मिलता है ।
( 4 ) प्रदत्त प्रस्थिति का मुख्य स्रोत समाज की परम्परा है जबकि अर्जित प्रस्थिति का स्रोत व्यक्ति स्वयं है ।
( 5 ) प्रदत्त प्रस्थिति अनिश्चित होती है , क्योंकि यह प्रथा व परम्परा पर आधारित होती है जबकि अर्जित प्रस्थिति इस अर्थ में निश्चित होती है ।जबकि अर्जित प्रस्थिति का स्रोत व्यक्ति स्वयं है ।
( 6 ) प्रदत्त प्रस्थिति का निर्धारण आयु , लिंग , नातेदारी व्यवस्था , प्रजाति तथा परिवार के आधार पर होता है , जबकि अर्जित प्रस्थिति का निर्धारण शिक्षा , संपत्ति व्यक्तिगत योग्यता या कुशलता अथवा करिश्मा के आधार पर होता है ।
( 7 ) प्रदत्त प्रस्थितियाँ परम्परागत समाजों में तथा अर्जित प्रस्थितियाँ आधुनिक समाजों में पायी जाती हैं ।
( 8 ) प्रथा , परम्परा तथा पुराने जमाने के नियमों पर आधारित होने के कारण प्रदत्त प्रस्थिति का अधिकार क्षेत्र बहुत ही सीमित होता है , जबकि अर्जित प्रस्थिति कर्म और गुणों पर आधारित होने के कारण इसका क्षेत्र बहुत ही विशालतम होता है ।
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