उपकल्पना का अर्थ
एक ऐसा विचार अथवा सिद्धान्त जिसे अनुसन्धानकर्ता अध्ययन के लक्ष्य के रूप में रखता है तथा उसकी जाँच करता है, तथा अध्ययन के निष्कर्ष में उपकल्पना को सत्य सिद्ध होने पर एक सिद्धान्त के रूप में स्थापित करता है। असत्य सिद्ध होने पर त्याग देता है। इस प्रकार से उपकल्पना एक कच्चा सिद्धान्त है।
उपकल्पना की परिभाषा
पी . एच . मान ने बहुत ही सूक्ष्म परिभाषा दी है , " प्राक्कल्पना एक अस्थाई अनुमान
डोबिनर के अनुसार , " प्राक्कल्पनाएँ ऐसे अनुमान हैं जो यह बताते हैं कि विभिन्न तत्व अथवा परिवर्त्य किस प्रकार अन्तर्सम्बन्धित हैं । "
जिनर का कथन है , " एक प्राक्कल्पना घटनाओं के मध्य कारणात्मक अथवा अन्तर्सम्बन्धों के विषय में एक अनुमान है । यह एक ऐसा अस्थाई कथन है जिसकी सत्यता अथवा मिथ्या सत्यता को सिद्ध नहीं किया गया है । "
एफ . एन . कर्लिजर का कहना है , " एक प्राक्कल्पना दो या दो से अधिक परिवयों के बीच सम्बन्ध प्रदर्शित करने वाला एक अनुमानात्मक कथन है । " आपकी परिभाषा में यह बात स्पष्ट की गई है कि प्राक्कल्पना दो या दो से अधिक चरों या कारकों का परस्पर कारणीय अनुमान है।
उपकल्पना की विशेषतायें ( Characteristics of Hypothesis )
( 1 ) स्पष्टता ( Clarity ) - गुडे एवं हट्ट लिखते हैं कि प्राक्कल्पनाएँ अवधारणाओं के दृष्टिकोण से स्पष्ट होनी चाहिएँ । इसमें दो बातों का ध्यान रखना होगा- ( i ) अवधारणा या वैज्ञानिक शब्दावली जो प्राक्कल्पना में काम में ली जाती है उनकी स्पष्ट परिभाषा देनी चाहिए तथा अगर हो सके तो अवधारणा को प्रक्रिया का वर्णन करके स्पष्ट करना चाहिए ; ( ii ) उनकी परिभाषाएँ वे होनी चाहिएँ जो विषय में सामान्यतया मान्य हों तथा विचारों का संचार करने वाली हो ।
अवधारणाएँ व्यक्तिगत रूप में बनाई हुई नहीं हों । ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए जो सभी के समझ में आ जाए तथा सभी समान अर्थ लगाएँ । अगर भाषा तथा अवधारणाएँ अस्पष्ट और भ्रामक होंगी तो विज्ञान जगत में अन्य लोगों के समझ में नहीं आ पाएगा कि प्राक्कल्पना क्या है ।
( 2 ) आनुभविक सन्दर्भ ( Empirical Reference ) - अध्ययन में प्राक्कल्पना ऐसी होनी चाहिए जिसकी तथ्यों द्वारा जाँच की जा सके । प्राक्कल्पना आदर्शों को स्पष्ट करने वाली होगी तो उसकी सत्यता की परीक्षा करना सम्भव नहीं होगा । प्राक्कल्पना ऐसे तथ्यों , कारकों तथा चरों से सम्बन्धित होनी चाहिए जो समाज अथवा अध्ययन के क्षेत्र में जाकर एकत्र किए जा सकें तथा उनकी प्रामाणिकता एवं विश्वसनीयता की जाँच की जा सके ।
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( 3 ) बिशिष्टता ( Specificity ) - उपयोगी प्राक्कल्पना सीमित , विशिष्ट तथा निश्चित पक्ष से सम्बन्धित होनी चाहिए । वह अध्ययन क्षेत्र से सम्बन्धित न होकर उसके किसी निश्चित पक्ष तक ही सीमित होनी चाहिए । ऐसा होने पर वैज्ञानिक सरलतापूर्वक सम्बन्धित तथ्यों को एकत्र करके प्राक्कल्पना की जाँच कर सकता
( 4 ) उपलब्ध प्रविधियों से सम्बद्ध ( Related to Available Techniques ) गुडे एवं हट्ट का कहना है कि अध्ययनकर्त्ता को प्राक्कल्पना का निर्माण करते समय अध्ययन के क्षेत्र में उपलब्ध प्रविधियों और पद्धतियों का ध्यान रखना चाहिए । वह ऐसी प्राक्कल्पना का निर्माण करे जिसकी जाँच के लिए • तथ्य - संकलन की प्रविधियाँ विज्ञान में उपलब्ध हों तभी वह उपयोगी प्राक्कल्पना कहलाएगी अन्यथा नहीं
( 5 ) सिद्धान्त से सम्बन्धित ( Related to Theory ) - गुडे एवं हट्ट ने लिखा है कि प्राक्कल्पना सिद्धान्त के समूह से सम्बन्धित होनी चाहिए । उपयोगी प्राक्कल्पना को इस विशेषता पर प्रायः नए विद्यार्थी ध्यान नहीं देते हैं । वे लोग प्राक्कल्पना के चुनाव के स्थान पर रुचि की विषय - सामग्री चुन लेते हैं और इस बात का पता नहीं लगाते हैं कि वह अनुसन्धान वास्तव में सामाजिक सम्बन्धों से सम्बन्धित विद्यमान सिद्धान्तों की जाँच करने , समर्थन करने अथवा संशोधन करने में सहायता करेंगे अथवा नहीं ।
( 6 ) सरलता ( Simplicity ) - प्राक्कल्पना अत्यधिक सरल भी नहीं होनी चाहिए । बहुत अधिक सरल प्राक्कल्पना अनुपयोगी और अव्यावहारिक भी हो सकती है । इस सत्य को यंग ने निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया है , " सरलता एक तेज धार वाला यंत्र है जो व्यर्थ की प्राक्कल्पनाओं एवं विवेचनाओं को काट भी सकता है । अतः इसे विलियम ओकम का उस्तरा कहा गया । है "
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