सर्वेक्षण का अर्थ क्या है?
सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ किसी घटना या परिस्थिति को ऊपरी तौर पर देखने से लगाया जाता है । सामाजिक सर्वेक्षण के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए इसकी विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषाओं का उल्लेख किया जा सकता है
सामाजिक सर्वेक्षण की परिभाषा
हैरीसन के अनुसार , " सामाजिक सर्वेक्षण एक सहकारी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत किसी भौगोलिक क्षेत्र में पायी जाने वाली सामाजिक दशाओं तथा समस्याओं के अध्ययन एवं विश्लेषण हेतु वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया जाता है ।
अब्राम्स के अनुसार , सामाजिक सर्वेक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक समुदाय रचना तथा उसकी क्रियाओं के सामाजिक पक्ष के सम्बन्ध में परिमाणात्मक तथ्य एकत्रित किये जाते हैं ।
बर्गेस के अनुसार , " किसी समुदाय का सर्वेक्षण , सामाजिक विकास का रचनात्मक कार्यक्रम प्रस्तुत करने हेतु उसकी दशाओं एवं आवश्यकताओं का वैज्ञानिक अध्ययन है ।
यंग के अनुसार , " समूह की रचना , क्रियाओं तथा जीवन दशाओं की खोज ही सर्वेक्षण हैं।
वैल्स के अनुसार , " किसी क्षेत्र विशेष के निवासी समूह की क्रियाओं तथा सामाजिक संस्थाओं का अध्ययन ही सर्वेक्षण है । इस प्रकार , उपरोक्त परिभाषाओं से सर्वेक्षण के प्रायः तीन पक्ष सामने आते हैं ( 1 )भौगोलिक क्षेत्र के सामाजिक जीवन की जानकारी ; ( 2 ) सामाजिक घटनाओं तथा समस्याओं की जानकारी और ( 3 ) समाज सुधार एवं प्रगति हेतु रचनात्मक कार्यक्रम ।
सामाजिक सर्वेक्षण की विशेषताएँ या प्रकृति
( 1 ) भौगोलिक सीमाएँ - किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र या स्थान जैसे नगर , ग्राम , कस्बा , मुहल्ला आदि के आधार पर ही सामाजिक सर्वेक्षण आयोजित किया जाता है । उनमें रहने वाले निवासी समूह या समुदाय हो , चाहे वे नगरीय हों , प्रामीण हों अथवा जनजातीय हों , सामाजिक सर्वेक्षण की अध्ययन सामग्री मानी जाती है । इस प्रकार सामाजिक सर्वेक्षण की कुछ न कुछ भौगोलिक सीमाएँ भी अवश्य होती हैं ।
( 2 ) जीवन दशाओं से सम्बन्धित सामाजिक सर्वेक्षण का सामान्यतः समूह या समुदाय की रचना तथा उसमें पायी जाने वाली दशाओं से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है । इसके अन्तर्गत समूहों के सामान्य जीवन से सम्बन्धित क्रियाओं एवं सामूहिक व्यवहारको विशेष महत्त्व दिया जाता है ।
( 3 ) रचनात्मक आधार - आयः सामाजिक सर्वेक्षण में विघटनकारी तत्त्वों एवं घटना तथा सामाजिक व्याधिकीय समस्याओं जैसे निर्धनता , बेकारी , अपराध , निरक्षरता आदि का ही विशेष अध्ययन किया जाता है । सर्वेक्षण के द्वारा इन समस्याओं के निराकरण हेतु समाधान ढूंढ़े जाते हैं ।
( 4 ) तथ्यों की वैषयिकता - आवश्यक तथ्यों को एकत्रित करने के दौरान यथासम्भव पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण को दूर करने पर विशेष ध्यान दिया जाता है तथा एक निष्मक्ष अथवा तटस्थ निरीक्षक की दृष्टि से घटनाओं को देखने एवं समझने और तथ्यों को संकलित करने का प्रयास किया जाता है । सर्वेक्षण को व्यक्तिगत प्रभाव से बचाकर उनमें वैषयिकता लायी जाती है ।
( 5 ) वैज्ञानिक प्रक्रिया सामाजिक सर्वेक्षण में किसी समूह , समुदाय अथवा समस्या से सम्बन्धित तथ्यों को एक क्रमबद्ध तथा व्यवस्थित रूप से एकत्रित किया जाता है और एक लम्बी प्रक्रिया के अन्तर्गत विभिन्न चरणों में विभाजित करके , उन तथ्यों का विश्लेषण किया जाता है । इन्हीं के आधार पर सामान्यीकरण निकाले जाते हैं जो प्राक्कल्पना के निर्माण में सहायक होते हैं ।
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( 6 ) सहकारी प्रक्रिया - आजकल अधिकांश सर्वेक्षण बड़े पैमाने की समस्याओं के अध्ययन के लिए आयोजित किये जाते हैं । अकेले सर्वेक्षणकर्ता की अपेक्षा विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित कई सदस्यों के अध्ययन दल इन्हें पूरा करते हैं । एक साथ ही विभिन्न दृष्टिकोण मिले जुले अथवा अन्तर - विज्ञानीय रूप में सामने आते हैं तथा विभिन्न अध्ययन - यंत्रों एवं साधनों को अपनाया जाता है । इसीलिए यह एक सहकारी प्रक्रिया है ।
( 7 ) परिमाणात्मक पक्ष यद्यपि सामाजिक सर्वेक्षण में विभिन्न प्रकृति के परिमाणात्मक तथा गुणात्मक तथ्य एकत्रित किये जाते हैं , इनमें अधिकांश रूप से परिमाण अथवा संस्थाओं से सम्बन्धित तथ्य या आँकड़े ही बड़ी मात्रा में एकत्रित किये जाते हैं । सामाजिक समस्याओंको प्रायः आँकड़ों में प्रस्तुत करते हैं । इसलिए सामाजिक सर्वेक्षणों के अन्तर्गत परिणाम ज्ञात करने के लिए आँकड़ों के सांख्यकीय विश्लेषण की अधिक आवश्यकता पड़ती है ।
सामाजिक सर्वेक्षण के गुण / महत्त्व
( 1 ) अध्ययन विषय से प्रत्यक्ष सम्बन्ध - जिस समस्या का अध्ययन करना होता है , वह प्रायः प्रत्यक्ष रूप में ही सर्वेक्षण के लिए उपयुक्त होती है । सर्वेक्षणकर्ता अध्ययन समस्या के प्रचलित स्वरूप को वास्तविक अर्थ में समझने का प्रयास करता है । वह उस क्षेत्र तथा समस्या के विभिन्न पक्षों का सूक्ष्म रूप से ध्यानपूर्वक निरीक्षण करता है । इस आधार पर वह समाज के सामने सामान्य परिणामों को लाता है । इससे अनेक प्रकार के व्यावहारिक अनुभव सामने आते हैं ।
( 3 ) निष्कर्ष विश्वसनीय होते हैं प्रत्यक्ष ज्ञान करने के लिए सामाजिक सर्वेक्षण विधि अधिक विश्वसनीय तथा निर्भरता योग्य भी समझी जाती है । इसके अर्न्तगत सम्पूर्ण अध्ययन वास्तविकताओं पर ही आधारित होता है जिन्हें सर्वेक्षणकर्ता मुख्यतः अपने मौलिक क्रम में देखता तथा समझता है और विश्वसनीय प्रथम स्तरीय सूचनाएँ एकत्रित करता है ।
( 4 ) प्राक्कल्पना - निर्माण में सहायक - सामाजिक घटनाओं को सरल तथा शुद्ध रूप में अध्ययन करने के लिए यदि सही प्राक्कल्पनाओं अथवा पूर्व विचारों का निर्माण किया जाता है , यदि उनमें वैज्ञानिक शुद्धता हो , तो इन्हीं पर सर्वेक्षणकर्ता अपना सम्पूर्ण अध्ययन आधारित कर सकता है । समय की बचत होती है , सुविधा बढ़ जाती है , निष्कर्ष भी सही होते हैं तथा नये सर्वेक्षणों के लिए भी प्राक्कल्पना बनाने का आधार सरलतापूर्वक प्राप्त हो जाता है । प्राक्कल्पनाओं की रचना का आधार भी प्रायःसफल सर्वेक्षण ही होते हैं ।
सामाजिक सर्वेक्षण के दोष या सीमाएँ
( 1 ) अदृश्य घटनाओं हेतु अनुपयुक्त - सामाजिक सर्वेक्षण के अन्तर्गत केवल दृश्य तथा मूर्त घटनाओं का ही अध्ययन सम्भव है । लेकिन सामाजिक घटनाओं तथा समस्याओं का अदृश्य एवं अमूर्त रूप प्रायः अधिक महत्त्वपूर्ण हो रहा है , जिसका अध्ययन इसमें सम्भव नहीं है ।
( 2 ) अध्ययन का क्षेत्र सीमित - सामाजिक सर्वेक्षणों के अन्तर्गत अध्ययन की जाने वाली सामाजिक घटनाओं एवं समस्याओं का क्षेत्र अत्यन्त ही सीमित है इसके द्वारा समाज के केवल किसी विशेष भाग का नया सीमित क्षेत्र में ही सफल अध्ययन किया जाता है ।
( 3 ) कार्यप्रणाली की जटिलता - सर्वेक्षण कार्य की सम्पूर्ण प्रक्रिया एक नियमित विधि अथवा प्रणाली पर आधारित होती है । इसमें एक पूर्वनिर्धारित रूपरेखा के अनुसार ही किसी कार्यक्रम को अपनाया जाता है । सर्वेक्षणकर्ता को निरन्तर निष्पक्षता बनाये रखने का प्रयल करते रहने के कारण उसके व्यवहार पर नियन्त्रण अधिक होता है तथा उसे अपनी बुद्धि एवं निजी विचारों के प्रयोग की स्वतन्त्रता नहीं होती है ।
( 4 ) अधिक समय तथा धन का अपव्यय - सर्वेक्षण कार्य में अधिक समय की आवश्यकता पड़ती है । कभी - कभी तो कई - कई वर्ष तक सर्वेक्षण चलते रहने के कारण आयोजनकर्ता का उत्साह भी कम हो जाता है तथा सूचनाओं की मौलिकता बदलने लगती है । सर्वेक्षणकर्ताओं के वेतन , भत्ते , प्रशिक्षण आदि पर धन भी अधिक खर्च होता है ।
( 5 ) बड़े अध्ययन दलों की आवश्यकता आजकल सामाजिक सर्वेक्षण प्रायः एक वृहत स्तर पर आयोजित किये जाते हैं । इसलिए इसके लिए बड़े - बड़े अध्ययन दलों की आवश्यकता पड़ती है ।
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