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व्यावहारिक समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषाएँ

व्यावहारिक समाजशास्त्र का अर्थ

व्यावहारिक समाजशास्त्र , समाजशास्त्र की वह शाखा है , जो समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों का प्रयोग सामाजिक समस्याओं एवं व्याधिकीय स्थिति को ज्ञात करने , उन्हें दूर करने के उपाय सुझाने एवं सामाजिक पुनर्निर्माण करने के लिए करती है । हम इस बात को जानते हैं कि प्रत्येक विज्ञान के सैद्धान्तिक और व्यावहारिक दो पक्ष होते हैं । इस आधार पर समाजशास्त्र के भी सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक दो पक्ष होते हैं । समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों का व्यावहारिक प्रयोग ही समाजशास्त्र का व्यावहारिक समाजशास्त्र समाज से सम्बन्धित एवं दैनिक तथा वास्तविक जीवन में हमारे सामने आने वाली कठिनाइयों को समझने , उनके कारणों को ढूँढ़ने एवं उन्हें हल करने के उपाय सुझाने आदि का प्रयत्न करता । 

व्यावहारिक समाजशास्त्र की परिभाषा

ग्रोब्स तथा पूरे के अनुसार , " जैसा कि विषय नाम से प्रत्यक्ष रूप में प्रकट होता है , व्यावहारिक समाजशास्त्र का मुख्य कार्य सामाजिक अनुभव की समस्याओं के विषय में सूचना प्राप्त करना और उनको सुधारना तथा यदि सम्भव हो तो उनके समाधान की पद्धतियों को खोज निकालना है । 

सारजेन्ट फ्लोरेन्स के अनुसार , " जब एक विज्ञान को व्यावहारिक कहा जाता है तो यह माना जाता है कि शुद्ध विज्ञान के द्वारा सामान्य सिद्धान्तों , नियमों अथवा मतों के एक निकाय का निर्माण किया गया है जो पर्याप्त रूप से निश्चित है , तब निगमन द्वारा सामान्य सिद्धान्तों को एक विशिष्ट मानने में प्रयुक्त करने का प्रश्न शेष रह जाता है । सार्जेन्ट फ्लोरेन्स के इस कथन से स्पष्ट है कि किसी भी विज्ञान की व्यावहारिक शाखा में उसके सैद्धान्तिक ज्ञान का प्रयोग किया जाता है । व्यावहारिक समाजशास्त्र में भी शुद्ध या सैद्धान्तिक समाजशास्त्र के सिद्धान्तों का व्यावहारिक प्रयोग किया जाता है । 

फोर्ड जेम्स के अनुसार , " क्रियात्मक अथवा व्यावहारिक समाजशास्त्र को ही अन्य नामों व्यावहारिक सामाजिक आधारशास्त्र अथवा सामाजिक नीति से सम्बोधित किया जा सकता है नैतिक उद्देश्य की प्राप्ति हेतु सामाजिक पद्धति के अनुकूलन के अध्ययन को ही व्यावहारिक सामाजिक आधारशास्त्र कहा जा सकता है । " फोर्ड जेम्स व्यावहारिक समाजशास्त्र को सामाजिक आचारशास्त्र एवं सामाजिक नीति के समकक्ष मानते हैं । इस रूप में व्यावहारिक समाजशास्त्र का सम्बन्ध नैतिकता अर्थात् क्या होना चाहिए से है । जैसे , सामाजिक समस्याओं का निराकरण कैसे होना चाहिये , सुव्यवस्थित समाज रचना कैसे सम्भव है , समाज का पुनर्निर्माण कैसे किया जाना चाहिए । 

जेरम डेविस एवं बार्नस के अनुसार , “ हम समाज को उसके वर्तमान से अधिक अच्छा बनाना चाहते हैं । सम्भव है , कुछ ऐसे भी नागरिक हो जो सन्तुष्ट हों और परिवर्तन को न चाहते हों , परन्तु उन्हें अनुचित महत्त्व नहीं देना चाहिये । समाज में जब तक ऐसे व्यक्ति हैं जो यह अनुभव करते हैं कि उन्हें न्याय नहीं मिल रहा है अथवा उनके साथ न्यायपूर्ण व्यवहार नहीं किया जा रहा है , जब तक उस सीमा तक तो समाज के पुनर्निर्माण की आवश्यकता है ही । व्यावहारिक समाजशास्त्र का काम यह है कि वह ऐसे समाज की पुनर्रचना करे । इसका लक्ष्य है 

( 1 ) स्वतन्त्र समाज में चिन्तन की विविधता हो ,

( 2 ) आर्थिक तथा शैक्षणिक असमानता को दूर कर समान अवसर प्रदान किये जाये ;

( 3 ) कोई समूह विशेष किसी विशेष सुविधा का शोषण न करे ; एवं

( 4 ) ऐसी सामाजिक व्यवस्था हो जिसमें सामाजिक बुद्धि - वैभव , सामाजिक कार्यदक्षता तथा ऐच्छिक सहयोग से समाज की अधिक भलाई हो सके ।

इस प्रकार डेविस तथा बार्नस समाजशास्त्र को एक ऐसे विज्ञान के रूप में स्वीकार करते हैं जो सामाजिक पुनर्निर्माण में योग दे और जिससे ऐसे समाज की रचना सम्भव हो सके जिसमें आर्थिक व शैक्षणिक असमानता एवं शोषण न हो तथा सहयोग द्वारा सभी का कल्याण किया जा सके । 







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