सिद्धान्त किसे कहते हैं? किसी विषय के संदर्भ में पर्याप्त प्रमाणों के आधार पर लिया गया अंतिम निर्णय जिसमें किसी परिवर्तन की गुंजाइश न हो ।
सिद्धान्त क्या है ? ( What is Theory )
" सिद्धान्त ' मानसिक क्रिया है । इस कथन की व्याख्या आवश्यक है । मनुष्य में तार्किक चिन्तन और कल्पना शक्ति है । यथार्थ को नियमों में बांधकर अवलोकन करना सैद्धान्तिक अवलोकन है । जगत का यथार्थ व्यक्ति से बाहर होता है । उनका अवलोकन करने से घटनाओं में क्रमबद्धता प्रतीत होती है । वर्षा होगी तो प्रायः बादल भी आसमान पर होंगे । आग होगी तो धुआँ भी होगा । किसी समूह में यदि एकता अधिक है तो उसमें समानता भी अधिक होगी ।
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इस तरह के अवलोकन से घटनाओं में क्रमबद्धता प्रतीत होती है और क्रमबद्धता से नियमों की स्थापना होती है । बाहरी जगत की क्रमबद्धता का मनुष्य अपनी तर्कबुद्धि से पता लगाता है । जब वह इस क्रमबद्धता की अभिव्यक्ति प्रतीक या भाषा के माध्यम से करता है तो नियम ( laws ) अथवा सिद्धान्त की स्थापना करता है । इस अर्थ में सिद्धान्त एक मानसिक क्रिया हैं।
सिद्धान्त का अर्थ - जो सत्य प्रमाणित होकर सिद्ध हो गया है और अब उसमें सत्य को प्रमाणित करने की कोई गुंजाइश नहीं रही । अथार्त:- सिद्ध + अंत = सिद्धान्त
सिद्धान्त की परिभाषा - किसी विषय में तर्क-वितर्क, विचार-विमर्श आदि के उपरांत निश्चित किया हुआ ऐसा मत जो सभी दृष्टियों से ठीक माना जाता हैं।
समाजशास्त्रीय सिद्धान्त क्या है ?
समाजशास्त्रीय सिद्धान्त अन्य सिद्धान्तों की भाँति एक सन्दर्भ संरचना के अन्तर्गत एकाधिक अवधारणाओं का एक अंत सम्बन्धित स्वरूप है फर्क केवल इतना है कि समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों का सम्बन्ध सामाजिक घटनाओं या समस्याओं से होता है इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए श्री वाल्टर वालैश ( Walter Wallace ) का कथन है कि “ समाजशास्त्रीय सिद्धान्त श्री सिद्धान्त ही है केवल फर्क इतना है कि
समाजशास्त्रीय सिद्धान्त सामाजिक होते हैं अर्थात् उनका सम्बन्ध ऐसी सामाजिक घटनाओं से होता है जिनकी व्याख्या करनी है । " साधारण शब्दों में हम कह सकते हैं कि व्याख्या करने योग्य तथ्यों से सम्बन्धित अवधारणाओं का योग सिद्धान्त है लेकिन जब यह तथ्य सामाजिक हो तो यह सिद्धान्त भी समाजशास्त्रीय बन जाते हैं ।
समाजशास्त्रीय सिद्धान्त का अर्थ
समाजशास्त्र में जब सामाजिक शोधकर्ता , सामाजिक घटनाओं को वैज्ञानिक पद्धति द्वारा व्यवस्थित रूप से अध्ययन और अन्वेषण करके प्राप्त वास्तविकताओं को तर्क संगत रूप से प्रदर्शित करता है , तो वह समाजशास्त्रीय सिद्धान्त कहलाते हैं ।
समाजशास्त्रीय सिद्धान्त की परिभाषा
एच . पी . फेयरचाइल्ड ( H. P. Fairchild ) के अनुसार " अनुभवों से प्राप्त तथ्यों पर आधारित वह सामान्यीकरण समाजशास्त्रीय सिद्धान्त कहलाते हैं , जो विश्वसनीय हो और जिनसे सामाजिक घटनाओं की व्याख्या की जा सके ।
ब्रेमसन ( Bramson ) ने लिखा है कि " सामाजिक सिद्धान्त , समाज की प्रकृति को समझने का प्रयास करता है अर्थात् सामाजिक घटनाओं की वैज्ञानिक व्याख्या करके प्रस्थापनाओं से प्रस्तुत करता है । वह जनसमूहों की क्रियाओं और विश्वासों को आधार प्रदान करता है और आदर्श समाज की रूपरेखा बनाने में सहायता करता है ।
टालकट पारसन्स ( Talcott Parsons ) के अनुसार " सिद्धान्त एक शब्द है जिसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ सम्मिलित हैं , जिसमें सामान्यीकृत अवधारणीकरण के तत्व सामान्य होते हैं । " आगे पारसन्स लिखते हैं कि " सिद्धान्त वर्तमान सन्दर्भ में तार्किक , अन्तर्सम्बन्धित , सामान्यीकृत अवधारणाओं की आनुभाविक आधार पर निरूप है।
पर्टन के अनुसार- " केवल उसी अवस्था में जब कि अवधारणाएँ एक योजना के रूप में अंतर्सम्बन्धित हो जाते हैं , तभी एक सिद्धान्त पनपना प्रारम्भ होता हैं।
गिस्क के अनुसार- वे स्वरूप हैं , जिनमें कि प्रयोग या परीक्षण के परिणामों को व्यक्त किया जा सकता है ।
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