संस्कृति का महत्त्व
संस्कृति समाज की धरोहर व हिरासत है , जिसे पीढ़ी - दर - पीढ़ी हस्तान्तरित करके जीवित रखा जाता है ।
• मानव के जीवन में संस्कृति ही वह पक्ष है , जो मानव को पशु से भिन्न करती है अर्थात् संस्कृति ही मानव को वास्तव में मनुष्य बनाती है ।
• संस्कृति क्षणभंगुर नहीं होती । संस्कृति एक सार्वभौमिक क्रिया है , जो पीढ़ी दर पीढ़ी एक - दूसरे को विरासत के रूप में प्रदान की जाती है ।
• संस्कृति के द्वारा ही व्यक्ति के अन्दर सामाजिक गुणों का विकास होता है जिसके कारण मानव के व्यक्तित्व का विकास होता है ।
• संस्कृति में समय , स्थान समाज एवं परिस्थितियों के अनुरूप अपने आप को ढालने की क्षमता होती है यही गुण संस्कृति अपने सदस्यों को भी सिखाती है ।
• संस्कृति का निर्माण विभिन्न इकाइयों से मिलकर होता है । अतः संस्कृति संगठन व सन्तुलन की द्योतक है ।
• संस्कृति अपने सदस्यों के लिए आदर्श होती है ।
• संस्कृति के अन्तर्गत विशिष्टता का गुण पाया जाता है।
• एक मनुष्य का पालन - पोषण सांस्कृतिक वातावरण में ही होता है । अतः संस्कृति ही मानव निर्माता होती है ।
सांस्कृतिक तत्त्व की विशेषताएँ
1. सांस्कृतिक तत्त्व गतिशील होते हैं ।
2. सांस्कृतिक तत्त्वों की उत्पत्ति से संबंधित ( छोटा या बड़ा ) इतिहास होता है ।
3. सांस्कृतिक तत्त्वों में समावेशन अथवा सामूहिकरण का गुण पाया जाता । जिससे वे आपस में सामंजस्य के साथ रहते हैं ।
संस्कृति के प्रकार भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति
ऑगवर्न ने अपनी पुस्तक ' सोशल चेंज ' 1922 में संस्कृति के दो प्रकार बताए
1. भौतिक संस्कृति इसके अन्तर्गत उन सभी भौतिक एवं मूर्त वस्तुओं का समावेश होता है , जिनका निर्माण मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया है । बीरस्टीड ने अपनी पुस्तक ' सोशल ऑर्डर में भौतिक संस्कृति के समस्त तत्त्वों को 13 भागों में विभाजित किया है - मशीने , उपकरण , बर्तन , इमारतें , सड़कें , पुल , हथियार , कलात्मक पुस्तकें , वस्त्र , वाहन , फर्नीचर , खाद्य पदार्थ एवं दवाइयाँ ऑगबर्न ने जिसे भौतिक संस्कृति कहा है उसी को मैकाइवर एवं पेज ने ' सभ्यता ' कहा है ।
2. अभौतिक संस्कृति इसके अन्तर्गत उन सभी अभौतिक एवं अमूर्त वस्तुओं का समावेश होता है जिसकी कोई माप - तौल , आकार , रंग आदि नहीं होता और यह संस्कृति समाजीकरण एवं सीखने की प्रक्रिया के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी की ओर हस्तान्तरित होती है । बीरस्टीड ने अभौतिक संस्कृति को दो भागों में बाँटा है ।
( 1 ) विचार इसके इन्होंने आठ प्रकार बताए हैं- वैज्ञानिक सत्य , धार्मिक विश्वास , पुराण कथाएँ , उपख्यान , साहित्य , अन्धविश्वास सूत्र एवं लोक कथाएँ ।
( 2 ) आदर्श व्यवहार नियम आदर्श नियमों का सम्बन्ध विचार से नहीं , बल्कि उन तरीकों या नियमों से है , जिन्हें संस्कृति अपना आदर्श मानती है ।
बीरस्टीड ने सभी आदर्श नियमों को 14 भागों में बाँटा है - कानून , अधिनियम , नियम , नियमन , प्रथाएँ , लोकाचार , फैशन , जनरीतियाँ , कर्म - काण्ड , परिपाटी निषेध , सदाचार , अनुष्ठान एवं संस्कार । मैलिनोवस्की , गिडेन्स तथा एस सी दूबे और ऑगबर्न जैसे समाजशास्त्रियों ने भौतिक और अभौतिक कारकों को एक साथ मिलाकर संस्कृति को परिभाषित करने का प्रयास किया ।
संस्कृति के निर्माण के आवश्यक तत्त्व या उपादान
संस्कृति के उपादान का तात्पर्य संस्कृति को संरचना में योगदान देने वाले विभिन्न अंगों या इकाइयों से है , जिसमें संस्कृति तत्त्व , संस्कृति संकुल , प्रतिमान या संस्कृति क्षेत्र आते हैं । संस्कृति तत्त्व संस्कृति की सबसे छोटी एवं पारिभाषिक इकाई होती है । अनेक संस्कृति तत्त्व के परस्पर मिल जाने संस्कृति संकुल का निर्माण होता है और जब संस्कृति संकुल की एक विशेष स्थिति या नाम मिल जाता है , तो वह संस्कृति प्रतिमान कहलाता है और जब संस्कृति प्रतिमानों का एक निश्चित सीमा तक विस्तार हो जाता तो वाह संस्कृति
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क्षेत्र कहलाता है । संस्कृति तत्त्व की अवधारणा का प्रयोग क्लार्क विसलर ने अपनी पुस्तक मैन एण्ड कल्चर में किया और कहा कि संस्कृति का वह सबसे छोटा भाग जिसे और विभाजित नहीं किया जा सकता , संस्कृति तत्त्व कहलाता है । संस्कृति तत्त्व की छोटी इकाइयाँ या एकल तत्त्व होते हैं जिनको मिलाकर संस्कृति का निर्माण होता है । अतएव चरण स्पर्श करना , हाथ मिलाना , हाथ जोड़ना , गले मिलना , झंडे को सलामी देना इत्यादि को सांस्कृतिक तत्त्व के अन्तर्गत शामिल किया जाता है । किसी संस्कृति का कोई तत्त्व संस्कृति के महत्वहीन हो सकता है । इस प्रकार किसी भी संस्कृति के स्वरूप को समझाने के लिए सांस्कृतिक तत्त्वों का अध्ययन आवश्यक होता है , क्योंकि वे तत्त्व प्रारम्भिक आधार होते हैं । जिसपर पूरी सांस्कृतिक संरचना निर्भर होती है । संस्कृति तत्त्व भी भौतिक और अभौतिक दो रूपों में पाए जाते हैं ।
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